Tuesday, February 24, 2015

नारे लगाने वाले नायक-हिन्दी कविता(nare lagane wale nayak-hindi poem)



आधुनिक युग में भी
गरीब की रक्षा का व्यापार
जमकर चलता है।

सभ्रांत वर्ग के मानस में
नारे लगाने वाला
नायक की तरह ढलता है।

कहें दीपक बापू प्रकृति से
न धरती बदली न इंसान
शनैः शनै आदतों में
परिवर्तन आते हैं,
यह अलग बात है
समाज सेवा के पेशेवर
श्रेय ले जाते हैं,
लेकर चंदा ज़माने से
उनके घर का चिराग जलता है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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