घर में भर लिया
लोहे, लकडी और प्लास्टिक का
मनुष्य ने
बदबूदार सामान
बेचैन मन के साथ
बाहर चैन की
तलाश करता है।
पैसे के जोर पर
बनाता
सर्वशक्तिमान के दरबार
नकली तारे लाकर
अपने घर का आकाश
भरता है।
कहें दीपक बापू
मन का खेल
योग खिलाड़ी ही
जाने
नियंत्रण में हो
तो
गेंद की तरह आगे
बढ़ायें
नहीं तो दौड़ाकर
माया की तरफ
देह का नाश करता
है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.comयह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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