Tuesday, November 18, 2014

योग खिलाड़ी और मन का खेल-हिन्दी कविता(yog khiladi aur man ka khel-hindi poem)



घर में भर लिया
लोहे, लकडी और प्लास्टिक का
मनुष्य ने बदबूदार सामान
बेचैन मन के साथ
बाहर चैन की तलाश करता है।
पैसे के जोर पर
बनाता सर्वशक्तिमान के दरबार
नकली तारे लाकर
अपने घर का आकाश भरता है।
कहें दीपक बापू मन का खेल
योग खिलाड़ी ही जाने
नियंत्रण में हो तो
गेंद की तरह आगे बढ़ायें
नहीं तो दौड़ाकर
माया की तरफ
देह का नाश करता है।


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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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