Saturday, November 8, 2014

छद्म नायकों से सतर्कता जरूरी-हिन्दी व्यंग्य कविता(chhadma naykon se satarkta jaroori-hindi satire poem)



स्वयं पर नहीं आती हंसी जिनको
दूसरों को चिढाकर
परम आंनद पाते  हैं।

स्वयं घर से निकलते
पहनकर धवल कपड़े
दूसरे पर कीचड़ उछालकर
  रुदन मचाते हैं।

जिन्होंने अपना पूरा जीवन
पेशेवर हमदर्द बनकर बिताया
ज़माने के जख्म पर
नारों का नमक वही छिड़क जाते हैं।

बंद सुविधायुक्त कमरों में
विलासिता के साथ गुजारते
 रात के अंधेरे
दिन में चौराहे पर  आकर
वही समाज सुधार के लिये
हल्ला मचाते हैं।

कहें दीपक बापू बचना
ऐसे कागजी नायकों से
नाव डुबाने की कोशिश से पहले
उसे दिखावे के लिये बचाते हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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