Wednesday, November 26, 2014

भावभंगिमा का खेल-हिन्दी कविता(bhav bhangima ka khel-hindi poem)



गज़ब हैं वह लोग
चेहरे पर जिनके रहती हंसी
हृदय में घात छिपाते हैं।

स्वार्थ के लिये
पहले हाथ जोड़ते
फिर लात दिखाते हैं।

कहें दीपक बापू भाव भंगिमा
करे देती हैं हमें मंत्रमुग्ध
चालाक लोगों पर
जिनके शब्द कोष में
सहानुभूति के अर्थ नहीं होते,
दर्द हरने का करते व्यापार
दवा की नदी में
पैसे से  हाथ धोते,

अपरे चरित्र लगे खून के छींटों पर
चर्चा करो तो
विरोधी की मात दिखाते हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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