फंदेबाज घर आते ही बोला
‘‘दीपक बापू, तुम अध्यात्म पर
बहुत बतियाते हो,
जब मौका मिले
ज्ञानी बनकर मुझे लतियाते हो,
न तुम संत बन पाये,
न कवि की तरह जम पाये,
फ्लॉप रहे अपने काम में,
न पाया नामे में हिस्सा
न काम बना दाम में,
इससे अच्छा तो कोई आश्रम बनाओ,
नहीं तो कोई अपनी किताब छपवाओ,
इस तरह अंतर्जाल पर टंकित करते थक जाओगे,
कभी अपना नाम प्रचार के क्षितिज पर
चमका नहीं पाओगे।
सुनकर हंसे दीपक बापू
‘‘जब भी तू आता है,
कोई फंदा हमारे गले में डालने के लिये
अपने साथ जरूर लाता है,
कमबख्त!
जिनका हुआ बहुत बड़ा नाम,
बाद में हुए उससे भी ज्यादा बदनाम,
कुछ ने पहले किये अपराध,
फिर ज़माने को चालाकी से लिया साध,
जिन्होंने
अपने लिये राजमहल ताने,
काम किये ऐसे कि
पहुंच गये कैदखाने,
संत बनने के लिये
ज्ञानी हों या न हों,
ज्ञान का रटना जरूरी है,
माया के खेल के खिलाड़ी हों शातिर
मुंह पर सत्य का नाम लेते रहें
पर हृदय से रखना
दूरी है,
न हम संत बन पाये
न सफल कवि बन पायेंगे,
अपने अध्यात्मिक चिंत्तन के साथ
कभी कभी हास्य कविता यूं ही बरसायेंगे,
मालुम है कोई सम्मान नहीं मिलेगा,
अच्छा है कौन
बाद में मजाक के दलदल में गिरेगा,
चाटुकारिता करना हमें आया नहीं,
किसी आका के लिये लिखा गीत गाया नहीं,
पूज्यता का भाव आदमी को
कुकर्म की तरफ ले जाता है,
जिन्होंने सत्य को समझ लिया
जीना उनको ही आता है,
तुम हमारे लिये सम्मान के लिये क्यों मरे जाते हो,
हमेशा आकर हमारे फ्लाप होने का दर्द
हमसे ज्यादा तुम गाते हो,
तुम हमारी भी सुनो,
फिर अपनी गुनो,
अक्सर हम सोचते हैं कि
हमसे काबिल आदमी हमें
मानेगा नहीं,
हमारे लिखे का महत्व
हमसे कम काबिल आदमी जानेगा नहीं,
सम्मान देने और लेने का नाटक तो
उनको ही करना आता है,
जिन्हें अपने ही लिखने पर
मजा लेना नहीं भाता है,
हमारे लिये तो बस इतना ही बहुत है कि
तुम हमें मानते हो,
कभी कवि तो कभी संत की तरह जानते हो,
पाखंड कर बड़े हुए लोगों को
बाद में कोई दिल से याद नहीं करता,
यह अलग बात है कि
उनकी जन्मतिथि तो कभी पूण्यतिथि पर
दिखावे के आंसु जमाना भरता है,
हमारे लिये तो
इतना ही बहुत है
अपनी हास्य कवितायें इंटरनेट पर
रहेंगी हमेशा
जो अपनी हरकतों से तुम छपवाओगे।
दीपक
राज कुकरेजा 'भारतदीप'
ग्वालियर,मध्यप्रदेश
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.comयह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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