इस बार हिन्दी दिवस पर हमारे बीस ब्लॉग पिछले वषों के मुकाबले कम पाठक ही जुटा सके। दरअसल हिन्दी ब्लॉग पर 14 सितम्बर पर हिन्दी दिवस से एक दिन पहले यानि 13 सितम्बर को सबसे अधिक लोग संभवतः प्रकाशन, वाचन अथवा लेखन के लिये सामग्री ढूंढते नज़र आयें हैं।
पहले लोग अपने विषय के लिये कहीं किताब की दुकान या लाइब्रेरी जाते थे पर अब
इंटरनेट पर हिन्दी भाषा में पाठ उपलब्ध होने की सुविधा ने उनको घर से बाहर जाने की
असुविधा से बचा लिया है। इस बार हमें यह
देखकर हैरानी हुई कि 13 सितम्बर
को पिछले वर्ष की अपेक्षा आधे पाठक ही थे।
इसके कारणों का विश्लेषण करना आवश्यक था।
ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं थी।
इसके कुछ कारण हमारी समझ में आये।
1-इस बार 14 सितम्बर
हिन्दी दिवस शनिवार को पड़ा था जिससे सरकारी कार्यालयों, बैंकों, विश्वविद्यालयों, विद्यालयों
तथा कुछ निजी संस्थाओं में अवकाश था। भले
ही कुछ जगह कार्यक्रम हुए हों पर उनमें वह भागीदारी नहीं रही होगी। इस कारण भाषण, वादविवाद प्रतियोगिता तथा लेखन प्रतियोगिताओं के साथ
ही परिचर्चा के कार्यक्रम भी कम आयोजित हुए होंगे। इस कारण बहुत कम लोगों ने इंटरनेट पर
राष्ट्रभाषा पर सामग्री ढूंढने का प्रयास किया होगा। इंटरनेट तथा समाचार पत्र
पत्रिकाओं में लिखने वालों ने जरूर यहां दौरा किया होगा पर आम क्षेत्र से आगमन कम
ही हुआ, ऐसा लगता है।
2-इस
बार टीवी समाचार चैनलों पर कुछ इस तरह की खबरें थी जिससे आम लोगों का रुझान उधर ही
रहा होगा। यह देखा गया है कि जब टीवी पर
कोई खास खबर होती है तो इंटरनेट पर सामग्री की खोज कम हो जाती है। क्रिकेट की क्लब स्तरीय प्रतियोगिता, बिग बॉस तथा कौन बनेगा करोड़पति जैसे कार्यक्रम
इंटरनेट पर सक्रिय लोगों को अपनी तरफ खींच लेते हैं। आईपीएल के दिनों में शाम को
दिन से भी पाठक कम हो जाते हैं जबकि सामान्य दिनों में इसके विपरीत होता है। एक तरह से इंटरनेट व्यवसायिक प्रचार समूहों का प्रति़द्वंद्वी
है। एक समय लोगों का टीवी चैनलों की तरफ
रुझान कम हो गया था। इंटरनेट पर सकियता
इतनी हो गयी थी कि लगता था कि टीवी चैनलों का समय अब गया कि तब गया । अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आयाम ने इन
व्यवसायिक चैनलों को नया सहारा दिया। पूरा
आंदोलन नाटकीय तौर से इन चैनलों के विज्ञापन प्रसारणों का सहारा बना। उस समय अनेक ब्लॉग लेखकों ने इस आंदोलन के
प्रायोजित होने की बात लिखी थी और हमने उनका समर्थन करते हुए यही कहा था कि कहीं न
कहीं व्यवसायिक प्रचार समूह के स्वामी इसे प्रायोजित कर रहे हैं। हालांकि वास्तविकता
यह है कि उद्योग, व्यापार और
प्रचार समूहों के स्वामी एक ही होते है-अर्थात
उद्योग, व्यापार और प्रचार
संगठनों के पर एक ही परिवार या समूह के लोग छाये हुए हैं- पर चूंकि हमें इस संबंध
मे ज्यादा कुछ पता नही है इसलिये कह नहंी पाते।
इधर आंदोलन चलवा कर टीवी चैनलों को दर्शक दिलाओ उधर बहसें चलाकर उद्योग के
उत्पादों का प्रचार कर उनका व्यापार बढ़ाओ।
यह नीति बुरी नहीं है पर इतना तय है कि देश में कोई बड़ा आंदोलन बिना
धनपतियों के चल नहंी सकता। यही बात इस संभावना को जन्म भी देती है कि तीनों
क्षेत्रों का स्वामित्व कुछ निश्चित लोगों के पास ही है। उनके दोनों हाथों में
लड्डू थें। आम जनता में व्याप्त निराशा को आशा में बदला, उनका काम चलता रहा और दूसरे भी पलते रहे। कहीं से कोई खतरा नही! नं जनता से न राजा से न
दलालों से!
3-तीसरा कारण यह भी हो सकता है कि इंटरनेट पर अधिक सफलता न मिलते देख हम उदासीन
हो गये हैं। इसलिये कम लिखते हैं और इस कारण हमारे ब्लॉग फ्लाप हो गये हों। सर्च इंजिन उन्हें ऊपर नहीं ला पाते हों।
हमने हिन्दी दिवस पर बहुत लेख तथा कवितायें लिख डाली। इस लेखक का उद्देश्य
आत्मप्रदर्शन करना नहीं वरन् अनुंसंधान करना था।
कुछ पढ़ना था। ब्लॉग फ्लाप हो रहे थे पर वह मृतप्राय नहीं थे। वह कुछ इस
लेखक को पढ़ा भी रहे थे। वैसे एक संभावना
हो सकती है। जहां शनिवार को कार्यक्रम
नहीं हुए वहां रविवार और सोमवार को हो सकते हैं।
ऐसे में पहले की अपेक्षा अधिक दिन तक हिन्दी दिवस का नशा रहेगा। इसलिये
ब्लॉगों के पाठक पंद्रह और सोलह सितंबर को भी बढ़ सकते हैं जबकि पहले सितम्बर से
उठकर 14 सितंबर की दोपहर के बाद
पाठकों की संख्या थम जाती थी। इतना जरूरी
है कि जितना हमने इस बार हिन्दी दिवस पर जितने पाठ लिखे उतने कभी नहंी लिखे।
बहरहाल हिन्दी दिवस पर सभी ब्लॉग लेखकों और पाठकों को बधाई। इस आशा के साथ
कि वह हिन्दी भाषा के साथ अपनी विकास यात्रा जारी रख सकें।
दीपक
राज कुकरेजा 'भारतदीप'
ग्वालियर,मध्यप्रदेश
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.comयह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
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