औरत की जिंदगी और इज्जत
बचाने का शोर चारों तरफ मचा है,
लालची और कायर इस ज़माने में
भला कहां कोई वफादार पहरेदार बचा है।
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औरत की जिंदगी और इज्जत
बचाने के लिये आतुर कई मेहरबान
दिखाई देते हैं,
लगाते हैं जो चौराहे पर नारे
बंद कमरे में वही लोग
अपनी नीयत पर नकाब लगा लेते हैं।
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औरत की इज्जत और जिंदगी
सुरक्षा के लिये
जिसके हाथ में दी जाती है,
उसी आदमी के पांव तले
वही कुचली जाती है,
वैसे भी पति तो स्वामी है
पता नहीं उसे पहरेदार की
पदवी क्यों दी जाती है।
बचाने का शोर चारों तरफ मचा है,
लालची और कायर इस ज़माने में
भला कहां कोई वफादार पहरेदार बचा है।
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औरत की जिंदगी और इज्जत
बचाने के लिये आतुर कई मेहरबान
दिखाई देते हैं,
लगाते हैं जो चौराहे पर नारे
बंद कमरे में वही लोग
अपनी नीयत पर नकाब लगा लेते हैं।
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औरत की इज्जत और जिंदगी
सुरक्षा के लिये
जिसके हाथ में दी जाती है,
उसी आदमी के पांव तले
वही कुचली जाती है,
वैसे भी पति तो स्वामी है
पता नहीं उसे पहरेदार की
पदवी क्यों दी जाती है।
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.comयह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका
८.हिन्दी सरिता पत्रिका
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