Saturday, April 16, 2011

कागज के पदों वाले शेर-हिन्दी व्यंग्य कविता (kagaj ke sher-hindi vyangya kavita

अपना रास्ता यूं भटक गये,
नैतिकता और आदर्श की बातें
रखी जुबान तक
हाथ और पांव
सामान समेटने में अटक गये।
बढ़ाते रहे बैंक खाते में रकम,
नहीं रहा अपने गरीब होने का गम,
खुश हो रहे रोज अखबार में छपता नाम,
प्रचार के बन गये गुलाम,
सड़कों पर चलना कर दिया बंद,
पैट्रोल फूंकने को हो गये पाबंद,
कागज के पदों वाले शेर बहुत हैं
मगर पहरों से सजे महल में भटक गये
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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