होली का दिन चंदामामा और जापान में सुनामी
लेखक-दीपक भारतदीप
खबरिया लोगों के अनुसार चंद्रमा 19 मार्च को धरती के सबसे अधिक निकट होगा। साथ ही यह भी बता रहे हैं कि जब चंद्रमा धरती के निकट होता है तब भयानक स्थिति होती है। प्रथ्वी पर अनेक तरह के अनेक प्राकृतिक प्रकोप बरसते हैं। चूंकि यह चंद्रमा प्रथ्वी के निकट आने का दौर शुरु हो चुका है और उसका पहला झटका जापान में लग चुका है इसलिये लोग अब 19 मार्च का इंतजार कर रहे हैं कि देखें अब विध्वंस का कौनसा रूप सामने आयेगा? संभव है कहीं कोई दूसरी बड़ी दुर्घटना हो और उसमें ऐसे ही इंतजार करने वाले भी कुछ लोग निपट जायें पर तब उनका हादसा दूसरे के लिये मनोरंजन बन जायेगा। सीधी बात यह है कि यह मानवीय स्वभाव है कि वह अपने मनोरंजन के लिये कभी प्रेम प्रसंग तो कभी हादसे देखना चाहता है। प्रसंगवश 19 मार्च को होली का पर्व आ रहा है। इधर चंद्र महाराज भी हमारे निकट चले आ रहे हैं। एक बात तो सत्य है कि समुद्र में ज्वार भाटा रात्रि के समय चंद्रमा की उपस्थिति में आता है। इसलिये समंदर के पानी और चांद की रौशनी की मोहब्बत समझी जा सकती है। जब होली के दिन चंद्रमा दुनियां के निकट होगा तब कहीं न कहीं दुर्धटना तो जरूर होगी क्योंकि उनका क्रम तो अनवरत रहना ही है। सवाल यह है कि चंद्रमा के निकट न होने पर भी तो दुर्घटनाऐं होती हैं । इसलिये चंद्रमा के निकट होने से उनको जोड़ा क्यों जाये? हत्यायें, डकैती, बलात्कार, ठगी तथा बहुत सारे पाप कर्म हर समय इस संसार में होते हैं और आगे भी होंगे। चंद्रमा दूर रहे या पास दुनियां के पापकर्म निरंतर जारी रहेंगे। कुछ लोगों को दंड भी मिलता है और कुछ साफ सुथरे बने रहते हैं। जिसको इन दिनों पापकर्म का दंड मिल जायेगा वह चंद्रमा के निकट होने को दोष देंगे। कुछ लोग पापकर्म नहीं करने पर भी किसी हादसे का शिकार हो सकते हैं तब वह भी चंद्रमा के निकट होने को दोष देंगे।
इधर टीवी चैनल कह रहे हैं कि अगले 48 घंटे जापान के लिये बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि उसके परमाणु संयंत्र संकट में हैं और उनमें कोई बड़ा विस्फोट हो सकता है। हम यह लेख 17 मार्च रात्रि नौ बजे लिख रहे हैं। मतलब यह कि 19 मार्च 2011 को अगर कोई दुर्घटना हुई तो चंद्रमा पर आक्षेप आयेगा। अब सवाल यह है कि इंसानों को किसने कहा था कि परमाणु संयंत्र बनाओ। वह भी भूकंप वाले ऐसे देश में जो पहले ही दो परमाणु बमों का विस्फोट झेल चुका है।
बहरहाल जापान की स्थिति अनिश्चित है। पहले सुनामी आई और अब रेडियम फैलने से उसको किस तरह कितना नुक्सान होगा यह अनुमान किसी ने नहीं लगाया है पर एक बात तय है कि वायु अगर विषाक्त हुई तो वहां किसी का भी रहना मुश्किल है। जब वायु विषाक्त हुई तो जल नहीं भी वैसा हो जायेगा। इसका मतलब यह कि जीवन का आधार खत्म ही हो जायेगा। यह इंसान का भ्रम है कि दौलत से वह िजंदा है। वह दौलत जो अब कागज के रूप में ही दिखती है उसे सांसें नहीं दे सकती। खाना, दारु, और दूसरे सामान खरीदते हुए आदमी अपनी प्राकृतिक सांसों की कीमत भूल जाता है। जल को केवल प्यास बुझाने वाला द्रव्य समझता है। उसे लगता है कि वह स्वचालित कंप्यूटर है। ऐसी प्राकृतिक आपदाऐं उसे अपनी और माया की औकात बताती हैं।
भारत से कुछ ऐसे लोगों के वहां जाने की जानकारी भी मिली जिन्होंने वहां नौकरी पाने के लिये लाखों रुपये खर्च किये। ऐसे में यह देखकर आश्चर्य हुआ कि जब लाखों रुपये हैं तो नौकरी किसलिये करने गये। जापान में मौजूद भारतीयों की हालत पर भारतीय चैनल बड़ा हो हल्ला बचा रहे थे। कुछ ने तो वहां काम कर रहे भारतीयों का आर्तनाद भी दिखाया जो कह रहे थे कि‘उनको भारत बुलाया जाये। वह भूखे मर रहे हैं। सरकार बाहर का खाना खाने के लिये मना कर रही है और घर में कुछ मिल नहीं रहा’ इधर कुछ भारतीय वापस लौटे तो कह रहे थे कि ‘वहां सब ठीक है। बस तीन दिन में तीन सौ भूकंप के झटके लगे।
ऐसे में सवाल यह है कि फिर वह वापस क्यों लौटे? अगर उनके लिये वहां सब ठीक था तो उन बिचारों को आने देते जो लाचारी की हालत में हैं। जो लोग जल्दी भारत लौटे हैं उनको शायद यहां ज्यादा अच्छा नहीं लगेगा। अगर वहां दस पंद्रह दिन रह लेते तब पता लगता कि अपने देश की जलवायु की कीमत क्या है? वैसे धन्य है वह लोग जो भूकंप के झटके झेलने वाले देश जापान में बसते रहे। हम एक दिन योग साधना कर रहे थे कि अचानक धरती के अंदर हलचल अनुभव हुई। शवासन में थे और उस हलचल ने विचलित कर दिया तो उठकर बैठ गये। साथी साधक बैठा था उसने पूछा-‘क्या हुआ।’
हमने कहा-‘जमीन में हलचल लग रही थी।’
उसने कहा-‘ऐसे ही कहीं से आवाज आई होगी।’
ऐसी आवाज दो बार आई। हम योग साधना समाप्त कर घर लौटे। एक घंटे में पता चल गया कि अफगानिस्तान और पाकिस्तान में भूकंप आया था। उसकी हलचल हमारे शहर में भी पायी गयी थी। समय वही था जब हमने अनुभव किया कि जमीन में हलचल हो रही है। अगर ऐसी हलचल हमें प्रतिदिन अनुभव हो तो शायद हमारी मनस्थिति बिगड़ जाये और पलंग पर आसन कर उसे तोड़ना प्रारंभ कर दें। पता नहीं कितने पलंग तोड़ डालें क्योंकि हम अब योगसाधना से विरक्त नहीं हो सकते। ऐसा निरंतर आने वाला भूकंप आदमी की मनोदशा नहीं बिगाड़ेगा इस पर यकीन करना कठिन है। जापान और अमेरिका हम जैसे भारतीयों के लिये सपने में आने वाले देश हैं। हम उनको भाग्यशाली समझते है जो बाहर जाते हैं। मगर उनका इस तरह वापस लौटना या कहें भाग कर आना अजीब लगता है। प्रसंगवश बता दें कि विश्व के अनेक विशेषज्ञ प्राकृतिक रूप से भारत को संपन्न राष्ट्र मानते हैं। यह अलग बात है कि हम भारतीय यह बात आज तक नहीं समझ पाये। बहरहाल हमें 19 मार्च और होली का इंतजार तो रहना ही है। यह जानते हुए कि समय निकल ही जाता है। हम जिंदा रहें या नहीं।
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कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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