Friday, March 4, 2011

घर के दरवाजे और सोच तंग है-हिन्दी शायरी (ghar ke darvaje aur soch tang hai-hindi shayri)

माना कि उनके घर के दरवाजे तंग हैं,
तो भी हम उसमें से हम निकल जाते,
मुश्किल यह है कि उनकी सोच भी
तंग दायरों में कैद है इसलिये वह हमको
कभी प्यार से नहीं बुलाते।
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कई बार बहुत लोगों पर यकीन किया हमने
पर हर बार धोखा खाते हैं,
फिर भी नहीं रुकता यह सिलसिला
कुदरत का खेल कौन समझा
धोखा देना एक आदत है इंसान की
बस, समय और चेहरा बदल जाते हैं।
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कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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