Saturday, May 15, 2010

महंगाई और नैतिकता-क्षणिकायें (mehangai aur naitikta-hindi shayri)


आधुनिकता के नाम पर
इंसान सस्ता हो रहा है,
मस्ती के नाम पर अनैतिकता की
गुलामी को ढो रहा है।
यौवन की आज़ादी के नाम पर
पेट में पाप के बीज़ बो रहा है।
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महंगाई आसमान पर चढ़ गयी है,
इसलिये नैतिकता तस्वीर में जड़ गयी है।
चीजों की तरह इंसान भी बिकने लगा है,
मांग आपूर्ति के नियम से अनुसार
जरूरत से ज्यादा है बाज़ार में
इसलिये मेहनत की कीमत पड़ रही है।
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कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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mehangai,mahangai

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