Wednesday, June 18, 2014

सामान और रिश्ता-हिन्दी व्यंग्य कविता(saman aur rishta-hindi vyangya kavita)



हर सामान महंगा और हर रिश्ता हो रहा है सस्ता,
दिल से जज़बात हो रहे लापला भर रहा सभी का दौलत से बस्ता।
कहें दीपक बापू बरसों से बिगड़ते समाज को कोसते सुना है
हालात यही रहे रहे तो ज़माना हो जायेगा पूरी तरह खस्ता।
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यूं तो आम इंसान हर रिश्ते को हलाल करता है,
जज़्बाती कहलाता मूर्ख जो  हर धोखे  पर मलाल करता है।
कहें दीपक बापू कोई होते जो दिल से चाहते हैं
वरना तो जख्मों का बाज़ार में सौदा भी दलाल करता है।
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सच नहीं रहा अब  यह कि इश्क अंधा होता है,
पर्दे की  कहानियों में विज्ञापन का यूं ही नहीं धंधा होता है।
कहें दीपक बापू सौंदर्य प्रसाधन से सजे चेहरों के आशिक बहुत
नीयत जिसकी पवित्र हो ऐसा कोई कोई ही बंदा होता है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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