आशिकों के कातिल बन जाने की खबर रोज आती है,
टीवी पर विज्ञापनों के बीच सनसनी छा जाती है।
कहें दीपक बापू दिल कांच की तरह टूट कर नहीं बिखरते
अब भड़ास अब गोली की तरह चलकर आग बरसाती है।
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आशिक नाकाम होने पर अब मायूस गीत नहीं गाते है,
कहीं गोली दागते कहीं जाकर चाकू चलाते हैं।
कहें दीपक बापू इश्कबाज हो गये इंकलाबी
नाकाम आशिक कलम छोड़कर हथियार
चलाते हैं।
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आशिकों ने प्रेमपत्र लिखने के लिये कलम उठाना छोड़ दिया है,
एक हाथ का मोबाइल दूसरे का चाकू से नाता जोड़ दिया है,
कहें दीपक बापू इश्क पर क्या कविता और कहानी लिखें,
टीवी पर चलती खबरों ने उसे सनसनी की तरफ मोड़ दिया है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.comयह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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