आकाश में उड़ते लोग -हिन्दी कविता
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पैसा, प्रसिद्धि और पद के पंख लगाये
उड़ते इंसान
आपसी समझौते में
आकाश बांट लेंगे,
जन्नत के फरिश्तों पर जमाये हैं नज़र
अपने लिये जगह वहां भी छांट लेंगे।
कहें दीपक बापू
जमीन पर रहने वाले हर जीव को
समझते हैं वह कीड़ा
फिर भी उठाये हैं
ज़माने के भले का बीड़ा,
मुंह एक है पर जुबान का क्या
हर पल भाषा और शब्द बदल जाते हैं,
कहीं वह सिर झुकाते
कहीं कुचल जाते हैं,
ऊंची उड़ान पर ऊंचे इरादे उनके
मतलब के लिये
जमीन पर आते,
अपनी उड़ानों का हिसाब गिनाते,
जन्नत के सुख के लिये मरना जरूरी है
यह समझाओ तो वह डांट देंगें।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
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