नये वर्ष के अवसर पर
शहर के नंबर वन
आशिक माशुका के जोड़े को
चुनकर उसे सम्मानित करने की
खबर बड़े जोर से एक महीन पहले ही छाई।
ग्यारह महीने से जो मजे उठा रहे थे
ब्रेिफक्र होकर, प्यार के मौसम में
सभी की नींद सम्मान ने उड़ाई।
कुछ आशिकों का शक था
अपनी माशुका के साथ इनाम मिलने का,
कुछ माशुकाओं को भी विश्वास नहीं था
अपने जोड़दार के साथ
अपना नाम का फूल शहर में खिलने का,
सभी अपने इश्क के पैगामों में
लिखने वाले संबोधन बदल रहे थे,
जो एक समय में रचाते थे कई प्रसंग
एक इश्क के व्रत में बहल रहे थे,
प्रविष्टी भरने के अंतिम दिन तक
सभी रच रहे थे
फार्म में भरने के लिये अपने इतिहास,
कुछ गमगीन हो गये तो कुछ करने लगे परिहास,
इश्क करने वाले आशुक बन गये योद्धा,
माशुकायें बन गयीं, संस्कारों की पुरोधा,
दे रहे थे सभी एक दूसरे को नर्ववर्ष की बधाई,
पर अंदर ले रहे थे, जंग के लिये अंगराई।
शहर के नंबर वन
आशिक माशुका के जोड़े को
चुनकर उसे सम्मानित करने की
खबर बड़े जोर से एक महीन पहले ही छाई।
ग्यारह महीने से जो मजे उठा रहे थे
ब्रेिफक्र होकर, प्यार के मौसम में
सभी की नींद सम्मान ने उड़ाई।
कुछ आशिकों का शक था
अपनी माशुका के साथ इनाम मिलने का,
कुछ माशुकाओं को भी विश्वास नहीं था
अपने जोड़दार के साथ
अपना नाम का फूल शहर में खिलने का,
सभी अपने इश्क के पैगामों में
लिखने वाले संबोधन बदल रहे थे,
जो एक समय में रचाते थे कई प्रसंग
एक इश्क के व्रत में बहल रहे थे,
प्रविष्टी भरने के अंतिम दिन तक
सभी रच रहे थे
फार्म में भरने के लिये अपने इतिहास,
कुछ गमगीन हो गये तो कुछ करने लगे परिहास,
इश्क करने वाले आशुक बन गये योद्धा,
माशुकायें बन गयीं, संस्कारों की पुरोधा,
दे रहे थे सभी एक दूसरे को नर्ववर्ष की बधाई,
पर अंदर ले रहे थे, जंग के लिये अंगराई।
नये साल में पिछले एक वर्ष के
आशिक माशुका के जोड़े को
इनाम देने के नाम पर चली
इश्क की जंग में
उथल पुथल से कई दिल टूटे
कहीं माशुका तो कहीं आशिक रूठे,
नहीं रहा कोई रिश्ता स्थाई।
आशिक माशुका के जोड़े को
इनाम देने के नाम पर चली
इश्क की जंग में
उथल पुथल से कई दिल टूटे
कहीं माशुका तो कहीं आशिक रूठे,
नहीं रहा कोई रिश्ता स्थाई।
एक दिन प्रतियोगिता के स्थगित
होने की खबर आई।
पता चला युवा आयोजक की पुरानी माशुका ने
अपने नये आशिक के साथ
प्रतियोगिता के लिये अपनी प्रविष्टी दर्ज कराई,
कर ली थी जिसने उसके दुश्मन से सगाई।
नयी माशुका की एक सहेली को
छोड़ गया था उसका आशिक
उसने भी उसके यहां गुहार लगाई।
नयी माशुका ने सार्वजनिक रूप से
इस नाटक करने पर कर दी
युवा आयोजक की ठुकाई।
टूट गया वह, उसने बंद कर दिया यह सम्मान
पर शहर में जहां जहां खेला जाता था
इश्क का खेल
सभी जगह जंग के मैदान में नज़र न आई।
नोट-यह एक काल्पनिक हास्य कविता मनोरंजन की दृष्टि से लिखी गयी है। इसक किसी घटना या व्यक्ति से कोई लेना देना नहीं है। किसी की कारिस्तानी से मेल हो जाये तो वही इसके लिये जिम्मेदार होगा।
होने की खबर आई।
पता चला युवा आयोजक की पुरानी माशुका ने
अपने नये आशिक के साथ
प्रतियोगिता के लिये अपनी प्रविष्टी दर्ज कराई,
कर ली थी जिसने उसके दुश्मन से सगाई।
नयी माशुका की एक सहेली को
छोड़ गया था उसका आशिक
उसने भी उसके यहां गुहार लगाई।
नयी माशुका ने सार्वजनिक रूप से
इस नाटक करने पर कर दी
युवा आयोजक की ठुकाई।
टूट गया वह, उसने बंद कर दिया यह सम्मान
पर शहर में जहां जहां खेला जाता था
इश्क का खेल
सभी जगह जंग के मैदान में नज़र न आई।
नोट-यह एक काल्पनिक हास्य कविता मनोरंजन की दृष्टि से लिखी गयी है। इसक किसी घटना या व्यक्ति से कोई लेना देना नहीं है। किसी की कारिस्तानी से मेल हो जाये तो वही इसके लिये जिम्मेदार होगा।
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका
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