इस देश का आदमी
उड़ना चाहता है ऊंची उड़ान
अपने पांवों में पुरानी ज़जीरों को बांधकर.
अपनी आँखों से परदे पर
देखकर आकाश का सुनहरा दृश्य
बहलता है सपनों के साथ
फड़कते हैं उसके हाथ
नकली नायकों की कामयाबी
देखकर ही चल पड़ता है
अंधेरी राहों पर
उसे पाने का ठानकर..
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परदे पर जो तुम देख रहे हो
उसे सच मत समझना
झूठ को सच की तरह
वहां सजाया जाता है..
दुनिया में जो हो सके
वही वहां दिखाया जाता है..
तुम्हारा सच ही तुमसे छिपाया जाता है
झूठ के रास्ते चलो
इसलिए तुमकों बहलाया जाता है..
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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