Thursday, June 30, 2016

स्वयं पर अपना अत्याचार-हिन्दी व्यंग्य कविता (Swyan par apna Atyachar-Hindi Satire Poem)


इंसान के दिल में
हर पल भय का
भूत समाया रहता।

बेचैनी का दरिया
देह की रक्त शिराओं में
हर पल बहता।

कहें दीपकबापू ज्ञान से
भागता पूरा ज़माना
स्वयं पर अपना अत्याचार
हर पल सहता।
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