Tuesday, February 2, 2016

श्रृंगार रस विरह का घाव-हिन्दी कविता(Shrigar Ras Virah ka Bhave-Hindi Kavita)

भद्र शब्द से अधिक
अभद्र शब्द का
समझते अधिक प्रभाव।

सरल वाणी से कम
नादान मानते
कर्णकटु शब्द का अधिक भाव।

कहें दीपकबापू भाषा पर
कर रहे अनुसंधान
लगा रहे रचना का पान
श्रृंगार रस के साथ
लगाते विरह का भी घाव।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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