Wednesday, October 28, 2015

पाप पुण्य के रूप-हिन्दी व्यंग्य कविता(Paap Punya ke Roop-Hindi Satire poem)

प्रचलन में परिवर्तन से
पहनावे के रूप भी
बदल जाते हैं।

नयी तकनीकी के दौर में
आधुनिक ठग सभ्य रूप
बदल आते हैं।

कहें दीपकबापू मेहनत से
जब जी चुराना
आराम की पहचान बने
पाप पुण्य के रूप भी
बदल जाते हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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