Monday, August 3, 2015

भगवाकरण का विरोध में जनमानस से सहानुभूति की आशा व्यर्थ-हिन्दी लेख(bhagwakaran ka virodh mein janmanas se sahanubhuti ki asha vyarth-hindi article)

                              हमें एफटीटीआई के छात्रों की अपने नवनियुक्त चेयरमेन को हटाने की मांग से कोई विरोध या समर्थन नहीं है।  उनके संस्थान की क्या स्थिति है यह भी हमें पता नहीं है।  बहुत दिन से उनकी हड़ताल चल रही है जिसका समाचार सुनते हैं।  उन पर जनवादी विचाराधारा से प्रभावित होने का आरोप लग रहा है वह इसका ख्ंाडन करते हैं।  वह राजनीति से जुड़े होने की बात भी नकारते हैं।  उनका तर्क आमजन मान लेते अगर उन्होंने
शिक्षा में भगवाकरण बंद करोजैसे नारे लगाते हैं तो स्वयं को ही संदेहास्पद हो जाते हैं।  इतना ही नहीं उन्होंने सरकार के विरुद्ध जिस तरह नारे लगाये वह शुद्ध राजनीतिक थे। भारतीय अध्यात्मिक विचाराधारा के समर्थक माने जाने वाले एक संगठन को वैसी ही चुनौती दे रहे हैं जैसे कि प्रगतिशील और जनवादी देते हैं।
                              भारतीय अध्यात्मिक विचाराधारा का होने के बावजूद इस लेखक   प्रतिबद्धता किसी संगठन से नहीं है पर भगवाकरण का विरोध इस तरह करना उस यथास्थितिवाद का द्योतक लगता है जिसमें बदलाव की जरूरत लगती है।  जब आप भगवाकरण के विरुद्ध विषवमन करते हैं तब यह तय समझिये कि आप समाज के एक बहुत बड़े समूह के मानस में अपने लिये संदेह के बीज बो रहे हैं।  ऐसे में लोकतंत्र की दुहाई देकर यूं भी अपने प्रति जनमानस का संदेह दूर नही कर सकते हैं क्योंकि इस प्रणाली में सभी समाज अपने हिसाब से जीने का अधिकर रखते हैं।  विरोध में तख्तियों पर लगाने के लिये बहुत सारे नारे मिल सकते हैं। अगर छात्र हैं तो अपने नारे भी गढ़ सकते हैं।  किसी विशेष विचाराधारा का नारा उधार लेकर उन्होंने स्वयं को ही संदेहास्पद बनाया है।  हम यहंा बता दें कि तीन शब्द गीता, योग और भगवा ऐसे भारी भरकम शब्द हैं जो भारतीय अध्यात्मिक विचाराधारा मानने वालों की सुप्त चेतना को जगा देते हैं। जिन लोगों को पूरे भारतीय समाज की संवेदना चाहिये उन्हें इन तीन शब्दों के आगे पीछे विरोध शब्द से ही परहेज करना चाहिये।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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