अहो
हिन्दी वाक्य में
वह अंग्रेजी के शब्द
इस तरह मिलायेंगे।
विश्व में राष्ट्रभाषा को प्रतिष्ठा
उसके अस्तित्व की पहचान
दाव पर लगाकर दिलायेगे।
कहें दीपक बापू मातृभाषा पर
संदेह करने वाले,
व्याकरण से अनजान है
भले ही उन्होंने
भाषा के सेवा के नाम पर
बंगले बना डाले,
ताक रहे विदेशों से
सम्मान की आशा से
अंग्रेजी में बोलकर,
कभी अपनी वाणी से
नहीं बोलते हिन्दी में तोलकर,
खायेंगे मातृभाषा रोटी
हिंग्लिश का भ्रम दिखायेंगे।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.comयह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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