अंधेरी राह पर
रोशनी के बिना
चल सकते हैं हम।
मुश्किल है
अंधेरे ख्यालों से
जिंदगी का निभना
जब लोग अपनी दिल
की सोच में
पालते महंगे सपने
अक्ल की रौशनी
कर देते कम।
कहें दीपक बापू
मतलब की
चुकाओ कीमत
वफादार बहुत मिल
जाते हैं,
सिक्के बांटो तो
लोग समूह में
प्रशस्ति गान गाते हैं,
जिंदगी के
आनंददायक क्षण
बीत जाते भीड़
में हंसते हुए
आपत्तियों बनती
जब मेहमान
अकेले में आखें
हो जाती नम,
जिंदगी में
जीतने की चाहत
जिनको होती है
वह किसी की तरफ
आंर्त भाव से
नहीं निहारते
लक्ष्य की तरफ
बढ़ाते
अकेले ही अपने
कदम।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.comयह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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