भरोसा देकर थोड़ी देर के साथी हमारा दिल लूट जाते हैं,
मतलब तक साथ निभाते सभी फिर छूट जाते हैं।
हार बार बाज़ार में सजता है कुंभ की तरह वादों का मेला,
सपने सामने दिखाते पीछे छिपाकर चालाकी गुरु और चेला,
मंच पर वक्ता बदलते है मगर जुबां से बात एक ही सुनाते,
शब्दों का जादू जिनका चल जाये वह कीमत लेकर भुनाते,
जहान को बदलने का नारा सुनते हुए लोगों के कान पक गये,
न हालात बदले न वादों की शक्ल सौदागर आते रोज नये,
कहें दीपक बापू ऊंची बातें करते हैं छोटी नीयत के लोग
हम तो एक कान से सुनते दूसरे से निकाले जाते हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.comयह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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