खूबसूरत चेहरे निहार कर
आंखें चमकने लगें
पर दिल लग जाये यह जरूरी नहीं है,
संगीत की उठती लहरों के अहसास से
कान लहराने लगें
मगर दिल लग जाये जरूरी नहीं है।
जज़्बातों के सौदागर
दिल खुश करने के दावे करते रहें
उसकी धड़कन समझंे यह जरूरी नहीं है।
कहें दीपक बापू
कर देते हैं सौदागर
रुपहले पर्दे पर इतनी रौशनी
आंखें चुंधिया जाती है,
दिमाग की बत्ती गुल नज़र आती है,
संगीत के लिये जोर से बैंड इस तरह बजवाते
शोर से कान फटने लगें,
इंसानी दिमाग में
खुद की सोच के छाते हुए बादल छंटने लगें,
अपने घर भरने के लिये तैयार बेदिल इंसानों के लिये
दूसरे को दिल की चिंता करना कोई मजबूरी नहीं है।
दीपक
राज कुकरेजा 'भारतदीप'
ग्वालियर,मध्यप्रदेश
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.comयह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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