गर्मी है तो अकाल है,
बरसात है तो बाढ़
सर्दी है तो भी बवाल है,
जिंदगी में कदम-दर-कदम खड़ा सवाल है।
कहें दीपक बापू
हरियाली पर सीमेंट की चादर छा रही है,
कुदरती तोहफों
की लूट
सभी को भा रही है,
किसी को तिजोरी में
किसी को बैंक खाते में
दौलत के भंडार जुटाने हैं,
धर्म के नाम पर पाखंड दिखाकर
अपने घर के लोग लुभाने हैं,
दिल के दीवानों की
रूह मर गयी है
अक्ल पर मतलब की परत
चढ़ गयी है,
उम्मीद का आसमान अपने कंधे पर
रखना हमने सीख लिया है
इसलिये वफा के नाम पर
धोखे का होता नहीं कभी मलाल है।
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कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.comयह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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