चिंत्तन कुछ यूं भटक गया है,
जिस रास्ते हम चले
वही है यह
तय नहीं कर पा रहे
लगता है कभी कभी
नहीं तय हो रही दूरी
लक्ष्य ही शायद आकाश में अटक गया है।
कहें दीपक बापू
महाबहसें सुनते सुनते
बुद्धि हो जाती कभी कभी कुंद
दूसरों की सोच सुनते सुनते
लगता है यूं
अपना निष्कर्ष ही कहीं टपक गया है।
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जिस रास्ते हम चले
वही है यह
तय नहीं कर पा रहे
लगता है कभी कभी
नहीं तय हो रही दूरी
लक्ष्य ही शायद आकाश में अटक गया है।
कहें दीपक बापू
महाबहसें सुनते सुनते
बुद्धि हो जाती कभी कभी कुंद
दूसरों की सोच सुनते सुनते
लगता है यूं
अपना निष्कर्ष ही कहीं टपक गया है।
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लेखक-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.comयह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका
८.हिन्दी सरिता पत्रिका
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