Tuesday, June 1, 2010

ग़नीमत है-हिन्दी शायरी

गनीमत है इंसान के पांव
सिर्फ जमीन पर चलते हैं,
उस पर भी जिस टुकड़े पर जमें हैं
उसे अपना अपना कहकर
सभी के सीने तनते हैं,
हक के नाम पर हर कोई लड़ने को उतारू है।
अगर कुदरत ने पंख दिये होता तो
आकाश में खड़े होकर हाथों से
एक दूसरे पर आग बरसाते,
जली लाशों पर रोटी पकाते,
आदर्श की बातें जुबान से करते
मगर कोड़ियों में बिकने के लिये तैयार सभी बाजारू हैं।
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कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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