हमसे तेल लेकर
अपने घर की
रौशनी उन्होंने
जलाई।
चहक रहे हैं वह
अपनी मस्ती में
न चिराग अपना न
दियासलाई।
कहें दीपक बापू
रौशनदान से
हम भी झंाक लेते
हैं,
कैसे वह अपनी
दरियादिली
अपने मुंह से फांक
देते हैं,
ज़माने की क्या
करेंगे भलाई
पहले स्वयं तो खा
लें मलाई।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.comयह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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