Tuesday, April 27, 2010

आईपीएल खत्म होते ही पाठक संख्या बढ़ी-हिन्दी लेख (IPL and HIndi blog-hindi lekh)

आईपीएल क्रिकेट प्रतियोगिता खत्म होने के अगले दिन ही अगर ब्लाग पर पाठक संख्या बढ़ने लगे तो विचारणीय विषय तो बनता ही है। यह लेखक पहले क्रिकेट का बहुत शौकीन था पर जब इसमें फिक्सिंग की बात आयी तो फिर मन विरक्त हो गया। 2006 में भारत विश्व कप प्रतियोगिता से बाहर हो गया तो उसके बाद लगभग क्रिकेट से मन हट ही गया। अंतर्जाल पर आने से पता लगा कि ऐसा अनेक लोगों के साथ हुआ है। हालत यह हो गयी थी कि 10 महीने तक अपने देश के लोगों के लिये क्रिकेट यहां एक ‘‘गंदा खेल’’ बन गया मगर फिर 2007 में भारत की क्रिकेट टीम को बीस ओवरीय विश्व कप प्रतियोगिता में जीत मिली तो फिर यह खेल लोकप्रिय हुआ। अब जिस तरह क्रिकेट मैचों में फिक्सिंग के आरोप लग रहे हैं उससे तो लगता है कि इसमें भारत को जबरन जितवाया गया था ताकि यहां के लोगों द्वारा इस पर खर्च लगातार किया गया जाये-याद रहे इस क्रिकेट केवल भारत के धन पर ही चल रहा है।
एक बार ऐसा लगा कि यह खेल इतना लोकप्रिय नहंी बन पायेगा पर अब आसपास माहौल देखकर ऐसा लगता है कि पुरानी पीढ़ी के जो लोग निराश हो गये थे वह भी फिर इस खेल को देखने लगे। वैसे तो यह कहा जा रहा था कि इसे केवल सट्टे या दाव खेलने वाले ही अब इसमें रुचि ले रहे हैं पर अब ऐसा लगने लगा है कि इसमें फिर लोग ‘‘ईमानदार मनोंरजन’’-यह बात आजकल एक खूबसूरत सपना ही है- तलाश रहे थे। थे इसलिये लिखा क्योंकि अब फिर इस पर उंगलियां उठने लगी है।
हिन्दी ब्लाग लिखने के साथ ही पाठक भी अच्छी संख्या में मिलने लगे थे। पिछली बार आईपीएल अफ्रीका में हुआ तब भी इतना अधिक पाठक संख्या में अंतर नहंी आया था। मार्च के आखिरी सप्ताह से जब भारत के परीक्षाकाल चलता है तब पाठक संख्या गिरती है। यह हुआ भी! मगर इधर आईपीएल प्रारंभ होते ही तो स्थिति बदल गयी। इसी दौरान एक ऐसी घटना भी हुई जिसने हिन्दी ब्लाग जगत में पाठक संख्या का भारी संकट दिखाई दिया। वह यह थी कि पाकिस्तान के क्रिकेट खिलाड़ी-उस भी फिक्सिंग का आरोप हैं और अभी तक अपने देश की टीम से बाहर है-भारत की एक महिला टेनिस खिलाड़ी से प्रेम प्रसंग सामने आया। उसमें भी पैंच था। वह यह कि उसने भारत की उसी शहर एक लड़की से उसने निकाह किया था जहां महिला टेनिस खिलाड़ी रहती थी। जब वह भारत में अपनी भावी वधु के शहर पहुंचा तो पूर्व वधु ने उस पर मुकदमा दायर कर दिया। इस खबर की प्रचार माध्यमों में जमकर चर्चा हुई। उस समय हिन्दी ब्लाग संख्या एकदम गिर गयी। तब तो ऐसा लगने लगा कि क्रिकेट, टेनिस और फिल्म वाले मिलकर कोई ऐसा संयुक्त उद्यम चला रहे हैं जिससे संगठित प्रचार माध्यमों को निरंतर सनसनी और मनोरंजन के लिये सामग्री मिलती रहे। अब यह तो पता नहीं कि अंतर्जाल पर सक्रिय अन्य वेबसाईटों या ब्लाग की क्या स्थिति रही पर इस ब्लाग लेखक का अनुमान है कि कम से कम भारत में इंटरनेट प्रयोक्ताओं की आवाजाही कम ही रही होगी।
जैसे ही किकेट और महिला टेनिस खिलाड़ी का मामला थमा, इस ब्लाग लेखक के ब्लाग पर पाठक संख्या बढ़ी। अब आईपीएल के मैच थमे तो अब गुणात्मक वृद्धि देखने में आयी है। अब है तीसरी क्षति की भरपाई। वह है परीक्षाकाल की! अब परीक्षायें तो समाप्त हो गयी हैं पर शिक्षक तथा छात्रों के साथ उनके पालकों को भी इस समय घर से बाहर अवकाश् को कारण प्रस्थान होता है और इस दौरान उनकी अतंर्जाल पर सक्रियता नहीं रह पाती। इस ब्लाग लेखक ने परीक्षाकाल तथा क्रिकेट मैच के दौरान पाठकों की कमी का अनुमान करते हुए एक पाठ लिखा था पर प्रेम प्रसंग एकदम अप्रत्याशित रूप से सामने आया।
कुछ दिनों पहले आस्ट्रेलिया का एक किस्सा सुनने में आया था जिसमें एक टीवी चैनल में रिपोर्टर ने अपने सनसनीखेज समाचारों के लिये पांच कत्ल करवाये थे। जहां कत्ल होता वह पुलिस से पहले पहुंच जाता और वहां से सीधे अपने चैनल को खबर देता था। इसलिये शक के दायरे में आ गया। जब हम भारत के संगठित -रेडियो, टीवी चैनलों, तथा समाचार पत्रों-की बात करते हैं तो यह बात तय है कि उनके आदर्श तो ऐसे ही गोरे देश हैं। मगर आस्ट्रेलिया की जनसंख्या कम है जबकि भारत में यह समस्या नहंी है। इसलिये यहां के प्रचार माध्यमों को बिना कत्ल कराये ऐसे ही समाचार मिल जाते हैं जो नाटकीय होते हैं। अधिकतर भारतीय टीवी चैनल फिल्म और क्रिकेट के सहारे हैं तो यही स्थिति क्रिकेट और फिल्म अभिनेताओं की भी है कि वह बिना प्रचार के चल नहीं सकते। इसलिये कभी कभी तो लगता है कि फिल्म और क्रिकेट के सक्रिय लोग योजनाबद्ध ढंग से ऐसे समाचार बनाते हैं जिससे दोनों का लाभ हो। आईपीएल को घोषित तौर से फिल्म जैसा मनोरंजन माना गया है।
वैसे जो स्थित सामने आयी है उससे तो लगता है कि आईपीएल विवाद के कारण क्रिकेट अपनी आभा फिर खो सकता है। जब यह विवाद चल रहा था तब उसे देखने वाले शायद समाचार सुन और पढ़ नहंी रहे थे इसलिये निरंतर चिपके रहे पर अब जब वह देखेंगे कि वह तो ठगे गये तब फिर उन्हें अपने मनोरंजन के लिये नये साधन तलाशने होंगे। हालांकि मई में बीस ओवरीप विश्व कप प्रतियोगिता हो रही है और उसमें बीसीसीआर्इ्र की टीम के-इसे भारत की प्रतिनिधि टीम होने का भ्रम पालना पड़ता है क्योंकि यह वहां अकेली जो होती है-प्रदर्शन को लेकर अनेक लोगों को संदेह है। वैसे तो पहले भी बुरी तरह हारी थी पर इस बार अगर इतना बुरा खेलती है तो गये काम से! इस दौरान पाठकों की संख्या पर अंतर पड़ने की संभावना नहीं है क्योंकि यह भारतीय समयानुसार देर रात को खेले जायेंगे। बहरहाल यह बात भी दिल्चस्प है कि इस लेखक ने क्रिकेट देखना छोड़ा दिया है पर यह विषय है कि किसी न किसी रूप में चला ही आता है।
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कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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Monday, April 26, 2010

टूट गया है तिलिस्म उनके विश्वास का-हिन्दी शायरी (khamosh toofan-hindi shayari)

दीवार के उस तरफ
वह आग की तरह उफन रहे हैं
यह सोचकर कि इस पार
पहुंचते ही तिनके को जला डालेंगे।
अंदाज नहीं उनको इस बात का कि
यहां भी कोई खामोश तूफान सांस ले रहा है
यह ख्याल करते हुए कि
हवाओं का रुख पलटा है कई बार
इस बार आग को भी भस्म कर डालेंगे।
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थोड़े प्यार की उम्मीद थी
उसे भी न दे सके
लगाई ऊंची कीमत उन्होंने अपनी दोस्ती की
यह सोचकर कि
लाचार को बिचारा बना देंगे।
टूट गया है तिलिस्म उनके विश्वास का
भले ही अपने घमंड का आसरा है उनको
पर जब आकर देखेंगे टूटा दिल
तब अपने ख्याल ही उनको हरा देंगे।
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Saturday, April 24, 2010

बंदे पर क्या यकीन करना-हिन्दी व्यंग्य कविता (bande par kya yakeen karna-hindi shayari)

शौहरत के शिखर पर वह बैठे हैं
नीचे आने से उनको डर लगता है,
उनके ऊंचे इंसान होने का वहम
बना हुआ है लोगों में
नीचे आने पर
अपने बौने चरित्र की पहचान होने से
उनका दिल घबड़ाने लगता है।
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साधु ही हमेशा मौन की राह नहीं अपनाते,
कसूरवार भी उसकी आड़ में अपने को छिपाते।
ओढ़ लेते हैं कभी कभी शैतान भी मौन
अपनी काली कारतूत पर साधुता की संज्ञा लिखाते।
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केवल सर्वशक्तिमान पर यकीन करना,
बंदे को आज नहीं तो कल है
अपने ही कर्म का फल भरना।
जिसको नहीं अपनी जिंदगी पर यकीन
उनसे निभाने की क्या उम्मीद करना।
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भलाई के धंधेबाज-हिन्दी व्यंग्य कविता(bhalai ke dhandhebaj-hindi shayari)

दीनों के दीनानाथ हैं
इंसान क्या मदद करेंगे।
नाम लेकर भलाई का
सारी रसद अपने घर भरेंगे।
लूट लिया ज़माने का पैसा,
हर लुटेरा लगने लगा अमीर जैसा,
बना रहे हैं भीड़ को चलाने का कायदा,
सुरक्षित रख रहे अपनी आने वाली पीढ़ी का फायदा,
फैल गये गरीबों के हितैषी चारों तरफ,
दौलत का सूरज बंद उनके घर के तालों में
कैसे पिघले भूख की सदियों से जमी बरफ,
चेहरे है चमकदार, नीयत है काली,
करेंगे क्या, उनके कहे पर ही बजाते लोग ताली,
सच यह है कि भले लोगों के झूंड नहीं बनते,
भलाई के धंधेबाजों के ही तंबू सरेआम तनते,
सर्वशक्तिमान के नाम लेते, अंदर है उनके शैतान
भीड़ जमा हैं उनके घर, अकेले हम क्या लड़ेंगे।

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शैतान और पहरेदार-हिन्दी व्यंग्य कविता (saitan aur paharedar-hindi shayari)

दहशतगर्द घूम रहे आजाद
उनकी गोलियों से सभी तो नहीं मर गये
फिर भी जिंदा हैं ढेर सारे लोग
इसलिये मान लो चमन में अमन है।

खेल के नाम पर चल रहा जुआ
जिनकी मर्जी है वही तो खेल रहे हैं
बाकी लोग तो बैठे हैं चैन से
इसलिये मान लो चमन में अमन है।

कुछ नारियों की आबरु होती तार तार
बाकी तो संभाले हैं घरबार
इसलिये मान लो चमन में अमन हैं।

लुटेरों ने दौलत भेज दी परदेस
पर फिर भी भूखे लोग जिंदा हैं
इसलिये मान लो चमन में अमन है।

खरीद रखा है शैतानों ने उस हर शख्स को
जो भीड़ पर काबू रख सकता है
अगर उनको रोकने की कोशिश हुई
तो आ जायेगा भूचाल,
छोड़कर भाग जायेंगे तुम्हारे पहरेदार
छोड़कर तलवार और ढाल,
जलने लगेगा हर शहर,
गु्फा से निकले शैतानों का टूटेगा कहर
चलने तो उनका कारवां,
वही हैं यहां के बागवां,
बंद कर लो अपनी आखें,
शैतानो को रोकें ऐसी नहीं रही सलाखें,
उनका व्यापार चल रहा है
इसलिये मान लो चमन में अमन है।

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Thursday, April 22, 2010

अपना खौफ छिपा रहे हैं-हिन्दी शायरी (apna khauf chhipa rahe haint-hindi shayari)

चमक रहे हैं उनके चेहरे,
लगे हैं उनके घर के बाहर पहरे,
वह मुस्करा रहे
या अपना खौफ छिपा रहे हैं।
उनकी नीयत का आभास नहीं होता
पर इधर उधार आंखें नचा रहे हैं
शायद कोई शिकार ढूंढ रहे
या अपने को बचा रहे हैं।
उनको फरिश्ता कह नहीं सकते
शैतान दिखते नहीं है,
उनकी काली करतूतों के किस्से आम हैं
उनकी टेढ़ी चालें इसकी गवाह है
जिनको जानता है पूरा ज़माना
उनको वह खुद से छिपा रहे हैं।
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इंटरनेट पर लिखने से होती है अलग अनुभूति-हिन्दी आलेख (hindi writing on internet)

एक लेखक के रूप में अंतर्जाल पर एक विचित्र प्रकार की अनुभूति होती है। दरअसल लेखन एकदम नितांत एकांत का विषय है। अगर कोई लेखक अपने भावों को विभिन्न विद्याओं में लिखते रहने के अभ्यस्त हैं तो फिर उसे इस बात की परवाह नहीं रह जाती कि कोई उसके लिखे को सराह रहा है या धिक्कार रहा है क्योंकि वह एक रचना के बाद दूसरी लिखने लग जाता है। सामान्य तौर पर पत्र पत्रिकाओं में लिखी रचना की पाठकों से प्रत्यक्ष रूप से कोई प्रतिक्रिया नहीं आती इसलिये लेखक को यह पता नहीं लगता कि उसकी रचनाऐं किस तरह की हैं पर अंतर्जाल पर पाठकों के लिये टिप्पणियां लिखने की व्यवस्था है जिससे लेखक को अनेक बार उनसे रूबरू होना पड़ता है। यह बुरा नहीं है क्योंकि इससे आपको अपने स्तर और विचारों की प्रमाणिकता के बारे में अनुभूतियां होती हैं। दूसरी बात यह है कि अन्य लेखक टिप्पणियां देते हैं जिनकी आप चाहें तो कोई भी पाठ लेखक उपेक्षा कर सकता है पर यह उचित नहीं है। इसकी वजह यह है कि लेखक तो स्वयं ही जिज्ञासु होता है और जब उसे यह पता लगता है कि अमुक टिप्पणीकार भी लेखक हैं तो स्वाभाविक मानवीय प्रवृत्ति के चलते वह उससे संपर्क करना चाहता है-उसके पाठ पर टिप्पणी लिखकर या फिर उत्तर देकर। कहीं कहीं टिप्पणियां लिखने का दौर गोष्ठियों के स्वरूप ले लेता हैं। यह सब अच्छा लगता है।
इसके बावजूद मुश्किल तब शुरु होती है जब अपनी अन्य व्यवसायिक या घरेलू व्यस्ततओं के चलते किसी ब्लाग लेखक के पास लिखने के अलावा दूसरी बातों के लिये समय निकालना मुश्किल हो जाता है। तब किसी भी ब्लाग लेखक दूसरे लेखक अहंकारी या स्वांत सुखाय कहकर आलोचना कर सकते हैं।
दूसरी बात यह भी है कि हम इन टिप्पणियों को गोष्ठी के रूप में समझें तो भी यह एक सच है कि अनेक ऐसे लेखक हैं जो लिखने से इतर गतिविधियों से दूर रहने के कारण इनसे दूर रहते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि वह लिखते खूब हैं पर उसे छपने या सुनाने का अवसर उनको कम ही मिल पाता है। जो लिखते कम हैं और छपते ज्यादा हैं और उनको लेखक या कवित के रूप में कार्यक्रम खूब मिलते हैं उनकी रचनायें सामयिक अधिक होती हैं जो एक समय के बाद अपना महत्व खो बैठती हैं। प्रचार की वजह से उनको नाम खूब मिलता है पर इसी कारण ही अनेक वर्षों से हिन्दी में प्रभावकारी लेखन न होने की शिकायत पैदा हुई है।
इधर अंतर्जाल पर एक ऐसा जरिया मिला है जिसमें किसी लेखक को किसी प्रकाशक, कथित समाजसेवी या साहित्यक पितृपुरुष की दासता की आवश्यकता नहीं है तब लेखन को व्यसन की तरह अपनाने वाले लेखकों के लिये ब्लाग लेखन मौज और मस्ती के साथ अपनी अभिव्यक्ति करने का एक रोचक साधन है। जैसा कि पहले ही स्पष्ट किया जा चुका है कि गोष्ठियों या साहित्यक मंचों से दूर रहने वाले यहां भी इसी राह पर चलेंगे तो उनको यहां भी एकांत भोगना पड़ेगा। अगर कोई सोचता है कि उसके लिखे पर हजारों लोग प्रतिक्रियायें देंगे तो यह उसका वहम है। संभव है शुरुआत में अधिक टिप्पणियां आयें पर एक समय ऐसा भी आ सकता है कि वहां शून्य दर्ज हो।
ऐसे में व्यसनी लेखकों को इस बात की टिप्पणियों की परवाह वैसे ही छोड़नी होगी जैसे गोष्ठियों या साहित्यक मंचों में वाह वाह का मोह छोड़ना पड़ता है। अपना लिखें, चाहें जितना लिखें, दूसरों का पढ़ें चाहें जितना पढ़ें और टिप्पणियां लिखें या नहीं पर अपना मुख्य उद्देश्य लिखना होना चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि अपने लिखे के के निर्णायक स्वयं न बने। अगर टिप्पणी वाह वाह कहने वाली हो तो फूलें नहीं और घटिया कहने वाली हो तो घबड़ायें नहीं। सच बात तो यह है कि यहां जिनको लिखने का सलीका नहीं है उनको पढ़ने का भी सलीका नहीं है।
एक दिलचस्प बात यह है कि इस अंतर्जाल पर कुछ गज़ब के लेखक हैं। उनका भाषा ज्ञान गज़ब का है। इतना कि अच्छा खासा लेखक अपने भाषा ज्ञान पर शरमा जाये। उनकी प्रस्तुतियां भाषा और शैली के लिहाज से इतनी आकर्षक होती हैं कि लगता है कि हम भी उनकी तरह लिखें मगर मुश्किल यह है कि जब आप अपने विषय में डूबे होते हैं तब ऐसा नहीं कर पाते क्योंकि तब भावों के अनुसार शब्द स्वयं बाहर आते जाते हैं। मगर उन लेखकों के साथ समस्या यह होती है कि वह भौतिक संसार के सच के इतने निकट पहुंच जाते हैं कि वह उनमें कल्पनाशीलता का एकदम अभाव हो जाता है। समसामयिक विषय पर अच्छा लिखने के बावजूद वह लेखक की तरह कल्पनाशील नहीं हो पाते। एक तरह से साहित्यकनुमा पत्रकार लगते हैं। ऐसे लोगों से भी सीखना चाहिये क्योंकि उनके लेखक का स्तर कम से कम आज के अनेक प्रख्यात लेखकों से कहीं बेहतर है।
उनको देखकर कुंठायें पालने से अच्छा है कि स्वयं अपनी अभिव्यक्ति को बाहर आने दें। दूसरी बात यह कि अपने लिखे का पीछा न करें। लोगों को अच्छा लगा या नहीं इस बात से अधिक आप यह देखें कि आपने प्रयास कैसे किया? अंतर्जाल पर एकदम सफलता नहीं मिल सकती पर आप आपने कदम जैसे जैसे बढ़ाते जायेंगे आपके पाठों का वजन बढ़ता जायेगा। आज नहीं तो कल उसे निंरतर पढ़ा ही जाता रहेगा। किताबों में छपकर किसी अल्मारी में बंद नहीं रहेगा।
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Monday, April 12, 2010

दुनियां का यही दस्तूर है-हिन्दी शायरी (duniya ka dastur-hindi vyangya kavita)

अपनी कामयाबी भी
उनको तब तक हज़म नहीं हो पाती है,
जब तक दूसरे की नाकामी की खबर
उनके पास न आती है।
दुनियां का यही दस्तूर है
मूर्खों का भी क्या कसूर है
सभी लोगों दूसरे की छोटी लकीर से
बड़ी लकीर खींचना नहीं आती है।
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हर रोज वह
कामयाबी के नये शिखर पर चढ़ जाते हैं,
उधार पर ली है कलाबाजी
या करना सीख ली दगाबाजी,
फिर भी किसी के टांग खींचकर
जमीन पर पटकने की आशंाकायें
उनको घेरे हुए है
जमीन पर रैगते हुए मामूली इंसानों की
कामयाबी से खौफ खाकर उनसे लड़ जाते हैं।
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हाशिए के बेजान बुत-हिन्दी शायरी (asali aur nakali jaambaz)

मैदान पर लड़ते कम
किनारे पर खड़े दिखाते दम
कागजी जांबाजो के करतब
कभी अंजाम पर नहीं पहुंचे
पर हर पल उनको अपनी आस्तीने
ऊपर करते हमने देखा है।
कीर्तिमान बहुत सुनते हैं उनके
पर कामयाबी के नाम पर खाली लेखा है।
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पत्र प्रारूप पर
हाशिए पर नाम लिखवाकर
वह इतराते हैं,
सच तो यह है कि
कारनामे देते अंजाम देते असली जांबाज
हाशिए पर छपे नाम प्रसिद्धि नहीं पाते हैं।
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उनको गलत फहमी है कि
किनारे पर चीखते हुए
तैराकों से अधिक नाम कमा लेंगे।
हाशिऐ पर खिताबों से जड़कर नाम
जमाने पर सिक्का जमा लेंगे।
शायद नहीं जानते कि
किनारे पल भर का सहारा है
असली जंग तो दरिया से लड़ते हैं जांबाज
लोगों की नज़रे लग रहती हैं उन पर
कागज के बीच में लिखा मजमून ही
पढ़ते हैं सभी
हाशिए के नाम बेजान बुत की तरह ही जड़े रहेंगे।
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Thursday, April 8, 2010

चेहरा और अदाऐं-हिन्दी शायरी (life style-hindi shayri)

किसी के एक चेहरे की
एक अदा पर यकीन न किया करो
बाज़ार के सौदागरों के इशारों पर
अदाकार कभी मुखौटे तो कभी अदायें बदल लेते हैं।
तुम अपने जज़्बातों पर काबू रखो
जुबां से भले ही तारीफ करो
पर दिल मत लगाओ उनकी अदाओं में
वक्त पड़े तो वह दिल भी बदल लेते हैं।
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विवाह और विरह का ड्रामा-हिन्दी व्यंग्य-हिन्दी व्यंग्य (vivah aur virah ka drama-hindi vyangya)

हम यह बात तो पहले ही लिख देते कि ‘पाकिस्तानी क्रिकेट खिलाड़ी तथा भारत की महिला टेनिस खिलाड़िन की यह शादी पंदह को होकर रहेगी’ तो यकीनन अंतर्जाल पर पढ़ने वाले पाठक लोहा मान जाते। ऐसा नहीं हो सका क्योंकि डार्विन के विकासवाद को लिखे एक लेख-जिसमें व्यंग्य और चिंतन दोनों प्रकार का भाव शामिल था-पर मित्र ब्लाग लेखकों ने अपनी टिप्पणियों से हड़का नहीं दिया जिससे यह सोचकर रुकना पड़ा कि एक दिन में एक साथ दो मूर्खतापूर्ण लेख प्रस्तुत नहीं करना चाहिये। दरअसल कुछ दिन पहले उन्मुक्त जी ने एक लेख में डार्विन के विकासवाद सिद्धांत को पतंजलि योग के संदर्भ में देखने का आग्रह हमसे सार्वजनिक रूप से पाठ लिखकर किया था। विकासवाद पर हमारी स्मृतियों में पहले से ही कुछ था पर विज्ञान के विषय में कोरे होने कारण वैसे भी कभी कुछ नहीं लिखते। उस दिन लिखा। एक विद्वान वकील ब्लाग लेखक मित्र ने कड़ी टिप्पणी की कि‘आप इस विषय पर कुछ नहीं जानते। आपने निराश किया।
टिप्पणियां दूसरी भी आईं पर हमारे मन में यह शक हो गया कि हम लिखने में कोई गलती कर गये हैं। संयोगवश दूसरे ब्लाग पर उन्मुक्त जी की टिप्पणी भी आयी पर उसमें उन्होंने कहीं हमारे विकासवाद के सिद्धांतों की जो स्मृतियां हैं उन पर आपत्ति नहीं की। इधर पाकिस्तान के क्रिकेट खिलाड़ी तथा भारत की एक टेनिस महिला खिलाड़ी-जिसे विश्व में नबेवीं वरीयता प्राप्त है-की शादी का नाटक सामने आ गया। इसी पाकिस्तानी खिलाड़ी से भारत के उसी शहर की एक लड़की के साथ पहले ही हो चुकी शादी की चर्चा भी हो रही थी जहां वह महिला टेनिस खिलाड़ी रहती है। वह भारत की महिला खिलाड़िन से शादी करने के पूर्व तलाक चाहती थी। इस पर भारत के संगठित प्रचार माध्यमों-टीवी, रेडियो और समाचार पत्र पत्रिकाओं- ने ढेर सारे समाचार प्रकाशित किये। इसे हम यूं भी कह सकते हैं कि विज्ञापनों का व्यापार खूब हुआ। जब कोई खास खबर होती र्है-या प्रायोजित कर बनाई जाती है-तब हर मिनट में विज्ञापन आता है। विज्ञापनदाताओं के इससे कोई मतलब नहीं होता कि किस कार्यक्रम में उनके विज्ञापन दिखाये गये बल्कि उनके प्रबंधक तो यह देखते हैं कि उस समय कितने दर्शक उसे देख रहे होंगे। इस लेखक ने कई बार यह बात लिखी है कि ऐसा लगता है कि आर्थिक तथा मनोरंजन क्षेत्र के विशेषज्ञ बकायदा योजना पूर्वक खबरें तैयार करवाते हैं या फिर कोई उनके लिये कोई स्वयंसेवी संगठन है तो निरंतर इसके लिये लगा रहता है जिसे इनसे रकम प्राप्त होती है।
यह शादी होकर रहेगी-यह बात हम उसी दिन लिखते अगर एक दिन पहले वर्डप्रेस पर प्रकाशित पाठ को अगले दिन ब्लागस्पाट पर बेफिक्री से नहीं  प्रकाशित करते। वह ब्लाग अनेक अन्य लेखक मित्रों के बीच में जाता है। ऐसे में चुनौती देती टिप्पणी-वह भी एक जानकारी ब्लाग लेखक से मिले-दिमागी रूप से हिला देती है। हमने डार्विन के विकासवाद पर अपने ही एक अन्य गुरु मित्र श्री एल.एम त्रिवेदी जी-जो अब ब्लाग पर अब कवितायें भी लिखते हैं-की शरण ली। उन्होंने इस बात की पुष्टि की कि हमारी सोच ठीक है और विकासवाद का सिद्धांत वही है जैसा कि हम सोच रहे थे। उन्होंने कहा कि तुम तो उस ब्लाग का लिंक मेरे ब्लाग पर दे जाओ या ईमेल पर भेजो मैं पढ़कर उस टिप्पणी दूंगा।
इधर हमारे दिमाग में यह शादी का चक्कर भी फंसा हुआ था। फिर कुछ लिखने का समय नहीं मिला क्योंकि एक आम लेखक के लिये ढेर सारे अन्य संकट भी हुआ करते हैं। टीवी तो अब देखना बंद सा हो गया। कहते हैं कि एक झूठ सौ बार बोला जाये तो अपने को भी सच लगने लगता है। यही हाल हमारा है। अधिकतर खबरें और बयान समय पास करने के लिये प्रायोजित करने के लिये प्रस्तुत किये जाते हैं यह बात लिखते और कहते हुए हमारे दिमाग में इस तरह घर कर गयी है कि कहना ही क्या? हर खबर या बयान के पीछे हमें बस प्रायोजन ही नज़र आता है।
जिस पाकिस्तानी क्रिकेटर की शादी और तलाक का यह ड्रामा हुआ उस पर उसी के देश के पुराने तेज गेंदबाज ने फिक्सर होने का आरोप लगाया बल्कि यहां तक भी कह डाला कि वह अब टेनिस में फिक्सिंग का धंधा शुरु करने वाला है। कथित दूल्हा पाकिस्तानी क्रिकेट के चरित्र पर क्या लिखें? जिस समय यह पंक्तियां लिखी जा रही हैं उस पर अनुशासनहीनता के आरोप में एक साल का प्रतिबंध लगा हुआ है। यानि वह अपने ही देश में खलनायक है। पंद्रह अप्रैल को उसकी शादी के अवसर पर तोहफे के रूप में इस प्रतिबंध से मुक्ति देने के प्रस्ताव पर भी चल रहा है।
पुरानी शादी को लेकर चल रहे विवाद में पहली पत्नी का प्रचार आक्रमण-जी हां, यह शब्द व्यापक अर्थ में लें-का सामना कर रहे उस पाकिस्तानी क्रिकेटर और अपने होने वाले पति की बचाव में उतरी महिला टेनिस खिलाडी ने बचाव करते हुए कहा कि ‘वह लोग (पहली बीबी और उसके माता पिता) कैसे सामने आयेंगे यह बताने कि उन्होंने एक इंसान(पाकिस्तानी क्रिकेटर) को बेवकूफ बनाया है?
हम पाकिस्तानी क्रिकेट की पहली और संभावित पत्नी पर कुछ नहीं लिखेंगे। क्योंकि हमारा मानना है कि छोटी उमर की लडकियां इतनी चालाक नहीं होती कि वह कोई स्वयं दांव पैंच खेंलें पर उनको बरगला कर शातिर लोग अपने पक्ष में कर ही लेते हैं। इस शादी तलाक नाटक में हमें नहीं  लगता कि लड़कियों की कोई सीधी भूमिका इस नाटकबाजी में होगी पर उनका इस्तेमाल किया गया है यह बात तय लगती है।
शक के कई कारण है। इस शादी नाटक पर ढेर सारा सट्टा लगा-यह बात संगठित प्रचार माध्यम स्वयं कह रहे हैं। इस नाटक के केंद्र बिन्दु में पाकिस्तान और मध्य एशियाई देशों का नाम अनेक बार आया और तीनों पात्र कहीं न कहीं उनसे जुड़े हुए थे। फिर क्रिकेट और टेनिस जैसे वह खेल जुड़े हुए हैं जिन पर बाजार तथा प्रचार माध्यमों का प्रत्यक्ष नियंत्रण है-संगठित प्रचार माध्यम कई बार यह बता चुके हैं कि इन पर सट्टा चलता है।
टीवी चैनलों और अखबारों की सुर्खियों में इस शादी तलाक नाटक को लाया गया दर्शकों और  पाठकों  के मनोरंजन के लिये-जिसमें व्यतीत समय पर करोड़ों रुपयों की आय होती है। पाकिस्तान के जिस पुराने तेज गेंदबाज ने अपने ही पाकिस्तानी दूल्हा क्रिकेटर पर यह भी आरोप लगाया कि उसने नया प्यार पाने के लिये 18 लाख डालर खर्च किये। इधर यह भी समाचार है कि भारत की महिला खिलाड़ी उस पाकिस्तानी से शादी कर दुबई में बसना चाहती है। फिर ऐसा दूल्हा जिस पर उसके ही देश के खिलाड़ी फिक्सिंग का आरोप लगा रहे हों तब लगता है कि उसने इस नाटक में वारे न्यारे किये होंगे। एक बात याद रखने वाली बात है कि भारत के बाहर अन्य देशों के खिलाड़ियों को इतने विज्ञापन नहीं मिलते इसलिये उनके पास अमीर होने के ऐसे ही नुस्खे हैं। क्रिकेट खिलाड़ी ने स्वयं यह नाटक न रचा हो पर उसके पीछे स्थित किसी प्रबंधकीय समूह ने यह सब रचा हो। वैसे भी वह मुखौटा ही लग रहा था।

इस नाटक मंडली के भारत से जुड़े सदस्यों ने मध्य एशिया के अमीरों को धर्म आधार विषय बनाकर खुश कर दिया होगा। मध्य एशिया के शिखर पुरुषों की यह खूबी है कि वह केवल पैसे से  नहीं  बल्कि अपने मजहब का प्रचार देखकर भी उछलते हैं। पांच छह दिन भारतीय टीवी चैनलों पर एक मजहब के ठेकेदार ही आते रहे। अन्य मजहब के लोगों को तो मानो यह बताया जा रहा था कि जैसे यह आपका कोई विषय नहीं है और न लेना देना। आपकी औकात तो दर्शक की है जिसे चाहे नाटक दिखायें चाहें विज्ञापन। इसलिये अपने दिमाग के दरवाजे बंद कर हमारा यह धार्मिक और आर्थिक कार्यक्रम देखो।
हम यह पहले ही दिन लिखते पर एक ही दिन दो मूर्खतायें नहीं करना चाहिये। कम से कम अंतर्जाल पर जहां टिप्पणियों की सुविधा है। वैसे श्री त्रिवेदी जी से दोनों मसलों पर हमारी चर्चा हुई थी। उन्होंने हौंसला बढ़ाया तो अब सोच रहे हैं कि कुछ अन्य विषयों पर भी इस तरह लिखा जाये। बात गलत निकले तो हार मान लो। सच निकले तो वाह वाह तो्र होगी ही।
वैसे पहले दिन से हमने अनुमान लगाया था वह एक समय गलत होता दिख रहा था तब लगा कि अच्छा हुआ नहंी लिखा पर बाद में जब परिणाम सामने आया तो लगा कि एक मौका अपने हाथ से निकल गया। बहरहाल अब ऐसे सीधे प्रसारित नाटकों का अंत का अनुमान पहले लगाना आसान नहीं है क्योंकि इस पर भी सट्टा चलता है और इसमें अभिनय करने वाले पात्रों की डोर उनके हाथों में ही होती है।
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