हिन्दू धर्म रक्षक पीके का विरोध करते हुए जो तर्क दे रहे हैं वह ठीक है या
नहीं यह अलग से विचार का विषय है पर हम परेश रावल, मिथुन चक्रवर्ती, अक्षय कुमार तथा अनेक उच्च कलाकारों से सजी फिल्म ओ माई गॉड फिल्म हम जैसे अध्यात्मिक चिंत्तकों
के लिये अच्छी फिल्भ्म थी। पीके और ओ माई गॉड में भारतीय धर्मों पर व्यंग्य जरूर
कसे गये हैं यह सही है पर ओ माई गॉड में श्रीमद्भागवत गीता के संदेश का महत्व बताया गया था। ओ माई
गॉड में अंधविश्वास के विरुद्ध विश्वास की स्थापना का प्रयास था जबकि पीके में
अंधविश्वास की आड़ में एक प्रेम कहानी प्रचारित हुआ है। ओ माई गॉड में कोई प्रेम
कहानी नहीं थी। इस फिल्म को आधुनिक कला फिल्म भी कहा जा सकता है। पीके में एक
प्रेम कहानी के माध्यम से समाज को सुधारने का परंपरागत प्रगतिशील और जनवादी प्रयास
करने का संदेश दिया जा रहा है। अनेक लोग इस फिल्म के प्रायोजन से जुड़े तत्वों पर
ही संदेह कर रहे हैं जबकि ओ माई गॉड में बिना प्रेम कहानी के मनोरंजन प्रस्तुत कर
यह प्रमाणित किया गया था कि फिल्मों के शारीरिक आकर्षण आवश्क नहीं है।
इसलिये पीके के विरोध करने वालों को सलाह है कि वह ओ माई गॉड से तुलना के प्रयासों से बचें। इस तरह उनके विरोध
को तर्कहीन बनाने का प्रयास हो रहा है। कभी कभी तो यह लगता है ओ माई गॉड के संदेश
को अप्रासंगिक करने के लिये यह फिल्म बनी है। अगर पीके का विरोध करते हुए ओ माई
गॉड भी वाक्य प्रहार करेंगे उनके सारे प्रयास निरर्थक हो जायेंगे।
दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.comयह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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