Sunday, June 14, 2015

नकली सन्यासियों के हिमालय-हिन्दी व्यंग्य कविता(naqali sanyasiyon ki himalay-hindi vyangya kavita)

ईमानदार हो या नहीं
ज़माने को बहलाने के लिये
दिखना जरूरी है।


किसी के जिस्म पर रहम करें
मगर दौलत और शोहरत के लिये
इंसानों के जज़्बातों से
खेलना जरूरी है।

कहें दीपक बापू सबसे ऊंचा हिमालय
त्यागियों का ही आश्रयदाता है
जज़्बातों के सौदागरों की छवि
सन्यासी जैसी दिखाने के लिये
नकली हिमालय बनाना जरूरी है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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