Friday, August 28, 2015

सुखद वर्तमान और आशामय भविष्य ही इतिहास मिटा सकता है-हिन्दीलेख(sukhad vartaman aur ashamay bhavishya hi ithas mita sakta hai-hindi article)

                      
                                   हमारा मानना है कि इतिहास को केवल कागज या लकड़े के पट्टे पर नहीं दर्ज होता। उसे भुलाना है तो जनमानस मे नयी स्वर्णिम छवि भी आना चाहिये। यह छवि वही लेाग बना सकते हैं जो सामान्यजनों के लिये हितकारक काम करते हुए उसकी रक्षा भी कर सकते हैं।
                                   औरंगजेबमार्ग का नाम बदलकर ‪‎अब्दुलकलाममार्ग किया गया है। उम्मीद है इतिहास अब भविष्य में विकास मार्ग पर ले जायेगा। हमने देखा है कि इस तरह अनेक बाज़ारों, मार्गों, इमारतों तथा उद्यानों के नाम बदल गये। क्षणिक रूप से भावनात्मक शांति देने वाले ऐसे प्रयास जनमानस में अधिक दिन तक याद नहीं रखे जाते। अनेक जगह तो लोग उसे बरसों तक पुराने नाम याद रखते हैं।  अनेक जगह तो नये नामों की वजह उस स्थान को  ढूंढने वाले लोगों को  परेशानी होती है।
                                   मुख्य बात यह है कि जब तक जनमानस में इतिहास की जो  अविस्मरणीय छवियां है उसे मिटाना सहज तभी हो सकता है जब उसका वर्तमान काल सुखद और भविष्य आशामय हो।  हमें अब यह विचार भी करना चाहिये कि क्या वाकई हमारे देश के सामान्यजन यह अनुभव करते हैं कि उनके सामने ऐसी छवियां हैं जिनके दर्शन से वह भावविभोर हो उठते हों। अगर इसका जवाब हां है तो यह मान लेना चाहिये इतिहास मिट गया और नहीं तो सारे प्रयास व्यर्थ हो गये, यह समझना चाहिये।  देश में जिस तरह एक बार फिरा निराशा, आशंका, और तनाव का वातावरण बन रहा है वह चिंताजनक है।  पुराने लोग आज भी अंग्रेजों को याद करते हैं इसका मतलब यह है कि वह नये व्यवस्था से प्रसन्न नहीं है। ऐसे में इस तरह के प्रयासों पर अनेक असंतुष्ट सवाल भी कर रहे हैं जिसका साहस उनमें व्यवस्था के प्रति निराशापूर्ण वातावरण से पैदा होता है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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Sunday, August 23, 2015

दिल का चैन-हिन्दी कविता(dil ka chain-hindi poem)


पलंग देह से लंबा है
अपनी टांग
कहां तक बढ़ायेंगे।

खाने के सामान का
ढेर सजा है
सब कैसे पेट में समायेंगे।

कहें दीपक बापू गोली से
निद्रा भी ला सकते हैं
मधुनाशक से खाने भी पचते हैं
अगर दिल का चैन चाहिये
कहां मिलेगा बतायेंगे।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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Monday, August 17, 2015

वाणी विलास-हिन्दी व्यंग्य कविता(vanivilas-hindi vyangya kavita)

महल की खिड़की से
कभी बाहर कभी झांका नहीं
वही इंसानों के दर्द में भी
कम ज्यादा का भेद करते हैं।

इर्दगिर्द किला बना लिया
प्रहरियों के बीच फंसी
जिनकी जिंदगी
वही ज़माने की बेबसी पर
खेद करते हैं।

कहें दीपक बापू वाणी विलास से
चल रही जिनकी गृहस्थी
अपने शब्दों से मजबूरों के
दिल में छेद करते हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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Wednesday, August 12, 2015

सुंदर पिचाई और गूगल-भारत के भाग्यविधाताओं के लिये आत्ममंथन का विषय(sundar picai(picchai)and google-great thought subject in india)

                                   तमिलनाडू के सुंदर पिचाई का दुनियां की सबसे बड़ा सर्च इंजन चलाने वाली कंपनी गूगल का मुख्य कार्यपालन अधिकारी (CEO) नियुक्त होना प्रसन्नता की बात होने के साथ ही भारत के आर्थिक, सामाजिक और धार्मिक विद्वानों के लिये आत्ममंथन का विषय है। गूगल की संपत्ति तीस लाख करोड़ है और जैसा कि हम जानते हैं कि कंपनी का मुख्य अधिकारी उसका एक तरह से स्वामी माना जाता है।  प्रश्न यह है कि भारत में रहकर कोई ऐसी तरक्की क्यों नहीं कर पाता?
                                   जवाब भी हम ही देते हैं।  हमारे यहां प्रकृत्ति की कृपा से अन्न, जल, खनिज के भंडार के साथ ही शुद्ध वातावरण है। उसके उपयोग के हम तरीके जानते हैं पर उनके व्यवसाय का लाभ उठाने के लिये  कुशल प्रबंध की प्रवृत्ति नहीं है।  शायद इसका कारण यह है कि हमारे यहां परंपरागत छोटे व्यापार लंबे समय तक चलते रहे जिसकी वजह से कुशल प्रबंध की विद्या में पारंगत नहीं हो पाये।  उस समय राज्य प्रबंध भी सीमित लक्ष्य के साथ होता था पर आजकल लोकतंत्र में उसकी सीमा बढ़ गयी है।  ऐसे में अकुशल प्रबंध से पूरे देश की व्यवस्था में विरोधाभास दिखने को मिलते हैं।  आजादी के बाद पूंजीवाद तथा साम्यवाद के बीच का मार्ग समाजवाद चुना गया पर उससे हुआ यह कि पुराने पूंजीपति अपना अस्तित्व तो बचाते रहे पर राज्य प्रबंध के अभाव में नये पूंजीपति नहंी बने।  जिसे देखो वही नौकरी तलाश रहा है। मजे की बात यह कि कंपनी का मुख्य कार्यकारी भी सेवक होता है पर भारत में कंपनियां पारिवारिक व्यवसाय की तरह चल रही  हैं।  आम लोगों के विनिवेश तथा राष्ट्रीयकृत बैंकों के ऋण लेकर बड़ी कंपनियां बनाये बैठे कथित मुख्य कार्यकारी सेवक के रूप में वेतन लेते हैं पर वास्तव में स्वामी बन जाते हैं।  अपने बाद अपना उत्तराधिकारी अपने पुत्र या पुत्री को बनाते हैं।
                                   सीधी बात कहें तो व्यवसायिक प्रवृत्ति का अभाव है जिससे यहां के धनपति कोई नया प्रयोग नहंी करते। वह अपनी कंपनी केवल अपने परिवार के पास रखना चाहते हैं।  हैरानी की बात यह कि जनता के पैसे और बैंकों के ऋण की रकम भी उनकी संपत्ति मानी जाती है।  भारत के इतने सारे साफ्टवेयर इंजीनियर है पर उन्हें न राज्य प्रबंध और न ही पूंजी क्षेत्र से कोई सहायता नहीं मिलती।  यही कारण है कि भारत के विकास के दावा हम जैसे लोगों को खोखले लगते हैं क्योंकि आज तक हमारे पास अपना कोई अंतर्जालीय सर्वर नहीं है। जबकि चीन और ईरान यह काम कर चुके हैं।
                                   15  अगस्त से पूर्व सुंदर पिचाई की गूगल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी बनने की खबर प्रसन्नता देने वाली है। हम आशा करते हैं कि हमारी बात उन स्थानों तक पहुंचेगी जो इस देश के भाग्य के निर्णायक हैं।  एक हिन्दी लेखक वह भी अगर सामान्य स्तर का हो तो उसे अंतर्जाल पर  पढ़ने वाले अधिक नहीं होते इसलिये यह आशा करना भी स्वयं को धोखा देना है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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Saturday, August 8, 2015

पत्थर की मूर्ति-हिन्दी कविता(patthar ki murti-hindi poem)


ज़माने में इंसान के पास
दौलत आने का हिसाब
अब कौन पूछता है।

शिक्षा की किताबें
पी जाती पूरी अक्ल
चाल की पहेलियां
अब कौन  बूझता है।

कहें दीपक बापू सोने का हार से
सजा दो चौराहे पर पत्थर की मूर्ति
दिल से गरीब इंसान
फरिश्ते की तरह पूजता है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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Monday, August 3, 2015

भगवाकरण का विरोध में जनमानस से सहानुभूति की आशा व्यर्थ-हिन्दी लेख(bhagwakaran ka virodh mein janmanas se sahanubhuti ki asha vyarth-hindi article)

                              हमें एफटीटीआई के छात्रों की अपने नवनियुक्त चेयरमेन को हटाने की मांग से कोई विरोध या समर्थन नहीं है।  उनके संस्थान की क्या स्थिति है यह भी हमें पता नहीं है।  बहुत दिन से उनकी हड़ताल चल रही है जिसका समाचार सुनते हैं।  उन पर जनवादी विचाराधारा से प्रभावित होने का आरोप लग रहा है वह इसका ख्ंाडन करते हैं।  वह राजनीति से जुड़े होने की बात भी नकारते हैं।  उनका तर्क आमजन मान लेते अगर उन्होंने
शिक्षा में भगवाकरण बंद करोजैसे नारे लगाते हैं तो स्वयं को ही संदेहास्पद हो जाते हैं।  इतना ही नहीं उन्होंने सरकार के विरुद्ध जिस तरह नारे लगाये वह शुद्ध राजनीतिक थे। भारतीय अध्यात्मिक विचाराधारा के समर्थक माने जाने वाले एक संगठन को वैसी ही चुनौती दे रहे हैं जैसे कि प्रगतिशील और जनवादी देते हैं।
                              भारतीय अध्यात्मिक विचाराधारा का होने के बावजूद इस लेखक   प्रतिबद्धता किसी संगठन से नहीं है पर भगवाकरण का विरोध इस तरह करना उस यथास्थितिवाद का द्योतक लगता है जिसमें बदलाव की जरूरत लगती है।  जब आप भगवाकरण के विरुद्ध विषवमन करते हैं तब यह तय समझिये कि आप समाज के एक बहुत बड़े समूह के मानस में अपने लिये संदेह के बीज बो रहे हैं।  ऐसे में लोकतंत्र की दुहाई देकर यूं भी अपने प्रति जनमानस का संदेह दूर नही कर सकते हैं क्योंकि इस प्रणाली में सभी समाज अपने हिसाब से जीने का अधिकर रखते हैं।  विरोध में तख्तियों पर लगाने के लिये बहुत सारे नारे मिल सकते हैं। अगर छात्र हैं तो अपने नारे भी गढ़ सकते हैं।  किसी विशेष विचाराधारा का नारा उधार लेकर उन्होंने स्वयं को ही संदेहास्पद बनाया है।  हम यहंा बता दें कि तीन शब्द गीता, योग और भगवा ऐसे भारी भरकम शब्द हैं जो भारतीय अध्यात्मिक विचाराधारा मानने वालों की सुप्त चेतना को जगा देते हैं। जिन लोगों को पूरे भारतीय समाज की संवेदना चाहिये उन्हें इन तीन शब्दों के आगे पीछे विरोध शब्द से ही परहेज करना चाहिये।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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