उस दिन हम दोनों पति पत्नी मंडी में सब्जी खरीदने गये। सब्जी मंडी में बाहर फलों के ठेले भी लगते हैं। सब्जी खरीदने के बाद हम एक ठेले वाले से सेव खरीदने पहुंचे। वहां एक सज्जन भी अपनी पत्नी के साथ सेव खरीदने के लिए वहां मौजूद थे। हमने फल वाले से भाव पूछे और उस दो किलो तोलने के लिये कहा।
इधर इन सज्जन ने भी कहा-‘छह किलो तोलना।’
वह सज्जन और उनकी पत्नी फल छांट रहे थे और इधर हम दोनों ने भी यही काम शुरु किया। इस बीच फल वाले ने उन सज्जन से कहा-‘आप क्या कहीं यह फल भेंट वगैरह करेंगे क्या?
उन सज्जन ने कहा-‘नहीं, हम यह सब सेव दोनों ही खायेंगे। अरे, फल खाने से सेहत बनती है और इस में मामले में हम कोई कंप्रोमाइजन (हिंदी में कहें तो समझौता) नहीं करते।’
हम दोनों उनकी तरफ देखने लगे तो वह बोले-‘ऐसा नहीं है कि हमारी 80 (उनकी स्वयं की) और 75 (उनकी पत्नी की) वर्ष की उम्र देखकर कोई सोचे कि हमारी पाचन शक्ति खराब होगी। रोज हम दोनों सुबह डेढ़ घंटे तक योग साधना करते हैं।’
हमने हंसकर कहा-‘हां, योग साधना वाले को फल का सेवन करना चाहिए।’
तब वह बोले-‘‘और क्या? योग साधना से ही बहुत जोरदार शक्ति आती है जिसे करने वाला ही जानता है। हम बाजार का कचड़ा नहीं खाते बल्कि अपने घर का खाना और यह फल ही खाते हैं। मुझे तो जब जरूरत होती है सेव खाता हूं।’
हमने पूछा कि-‘आप कब से योग साधना कर रहे हैं?’
तब वह बोले-‘हम तीस साल से कर रहे हैं जबकि बाबा रामदेव जी ने अभी सिखाना शुरु किया है। उनका यह प्रयास बहुत अच्छा लगता है पर हमें तो बहुत पहले एक योग शिक्षक ने यह सिखाया था
उनका यह आत्मविश्वास देखने लायक था। हम दोनों पति पत्नी भी प्रतिदिन योग साधना करते हैं पर अब पहले से उसकी अवधि कम कर दी है।
जब फल लेकर वहां से हटे तो श्रीमतीजी ने हमसे कहा-‘देखो, इनके अंदर कितना आत्मविश्वास है। हम दोनों को भी अब योगसाधना (आसन और प्राणायम) की अपनी अवधि बढ़ाना चाहिये।’
हमने हंसते हुए कहा-‘पर वह सज्जन व्यवसाय या नौकरी से सेवानिवृत लग रहे हैं इसलिये उनकी दिनचर्या में इतना परिश्रम करना शामिल नहीं होगा जबकि हम दोनों को वह करना पड़ता है। अलबत्ता कुछ अवधि बढ़ाना चाहिये पर यह इस तरह फल खाना थोड़ा हमसे नहीं होगा। खासतौर से जब हम रात को भोजन का त्याग इसी योगसाधना की वजह से कर चुके हैं। जहां तक फलों का सवाल है तो हम तो पहले से यह तय कर चुके हैं कि जो भी मौसमी फल है वह दिन में एक बार जरूर खायेंगे।’
बहरहाल हमें उन दंपत्ति को देखकर बहुत खुशी हुई। ऐसी कौम को ही जिंदा कौम कहा जाता है। योगासन, प्राणायम, और मंत्रोच्चार से मन, विचार, और बुद्धि के जो विकार निकल जाने पर देह में जो हल्कापन अनुभव होता है उसे आप तभी अनुभव कर सकते हैं जब योगसाधना करें। जिस तरह हम अपने सिर पर कोई बोझा उठाते हुए थक जाते हैं और जब उसे निर्धारित स्थान पर उतारते हैं तभी पता लगता है कि कितना वजन उठा रहे थे। जब तक निर्धारित स्थान तक नहीं पहुंचते तब तक वह बोझ हमें अपने साथ जन्म से चिपका हुआ लगता है। यही स्थिति योगसाधना की है। हम अपने साथ पता नहीं कितने प्रकार के तनावों का बोझा उठाये हुए चलते हैं। अपने खान पान से हम अपने अंदर कितना विकार एकत्रित कर चुके हैं इसका पता हमें स्वयं ही नहीं चलता। जब योगसाधना और मंत्रोच्चार के द्वारा हम अपने अंदर से विकार निकालते हैं तब पता लगता है कि कितना बोझ उठाये थे। इतना ही नहीं जीवन में अनेका प्रकार के ऐसे भ्रम भी निकल जाते हैं जिनको लेकर हम चिंतित रहते हैं। देह और मन की हलचलों पर दृष्टि रखने की जो शक्ति प्राप्त होती है उससे हम अन्य के लिये तो नहीं मगर अपने लिए तो सिद्ध हो ही जाते हैं।
आखिरी में उन सज्जन की वह बात बताना जरूरी है जो हम चलते हुए उन्होंने कही थी कि-‘हमने अपनी जिंदगी में कभी डाक्टर के यहां कदम नहीं रखा। हम डाक्टरों को पैसे देने से इसलिये बचे रहे क्योंकि हमने योग साधना की और जो जेब से पैसा निकलना चाहिये वह इन फलों पर खर्च किया। अरे, भई पैसा है तो कहीं तो निकलेगा।’
उन सज्जन की बातचीत से हमारा यह भ्रम टूटा कि ’हम नियमित रूप से योगसाधना करने वाले चंद लोगों में शामिल हैं’, तो इस बात से प्रसन्नता भी हुई कि योग साधना का प्रचार बढ़ रहा है। आखिर कौन नहीं चाहेगा कि उसके आसपास स्वस्थ समाज हो। सच तो यह है कि जब हम योग क्रियाओं को द्वारा अपने विकार निकाल देते हैं पर फिर इस दुनियां में तनाव पूर्ण हालातों में रह रहे लोगों को देखते हैं तब अफसोस होता है कि लोग उससे बचने के लिये योगसाधना का सहारा क्यों नहीं लेते। योग साधना से कोई हमारे हालात नहीं बदलते पर नजरिया बदल जाता है जिन्होंने यह सब किया है वही इसका प्रमाण दे सकते हैं। अनेक विचारक इस देश की कौम को मुर्दा कौम कहते हुए नहीं चूकते और जिंदा कौम बनाने का एक रास्ता है योगसाधना
.................................
यह आलेख/कविता पाठ इस ब्लाग ‘हिंद केसरी पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
इस लेखक के अन्य संबद्ध ब्लाग इस प्रकार हैं
1.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की हिंदी एक्सप्रेस पत्रिका
3.दीपक भारतदीप की हिंदी पत्रिका
4.दीपक भारतदीप का चिंतन
5.दीपक भारतदीप की अनंत शब्द योग पत्रिका
WordPress wallpapers
-
Has your desktop been looking a bit drab lately? If so – or if you’d just
like to show a little WordPress love – we’ve got just the remedy: 30
one-of-a-kin...
2 hours ago