Thursday, August 28, 2014

असहजता-हिन्दी कविता(asahajata-hindi poem)



यश प्राप्ति की इच्छा
समाज में हास्य का पात्र भी
बना देती है।

धन के पीछे दौड़
कर देती विचार अनियंत्रित
पांव अपराधिक कीचड़ में
पूरी तरह से सना देती है।

ऊंचे पद पर चढ़ने की ललक
अगर डगमगाये कदम
तब त्रास घना देती है।

कहें दीपक बापू प्रगति की राह
असहजता से चलने पर
सहृदयों से ठना देती है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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Wednesday, August 27, 2014

चिंता की लकीरों के बीच-हिन्दी कविता(chinta ki lakiron ke beech zindagi-hindi poem)



न महंगाई घटेगी
न भ्रष्टाचार रुकेगा
चिंताओं की लकीरों के बीच
जिंदगी यूं ही बीत जायेगी।

कोई हालातों से मजबूर है,
कोई सामानों के भंडार से भरपूर है,
जिनको हंसने की आदत नहीं
उनकी रोनी सूरत
कभी नहीं जीत पायेगी।

कहें दीपक बापू जिंदगी बिताने के
अंदाज सभी के अलग हैं
किसी ने पायी दौलत
खर्च करना आया नही,
कोई सुंदर है
बुद्धि से रिश्ता निभाया नहीं,
सच यह फांकों से भी
कर ली जिसने दोस्ती
जिंदगी उसके ही गीत गायेगी।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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Tuesday, August 19, 2014

समस्याओं की चिंता-हिन्दी कविता(samasyaon ki chinta-hindi poem)



उनको देश मे
भुखमरी की समस्या पर
बहुत चिंता है।

उनको देश में
बेरोजगारी की समस्या पर
बहुत चिंता है।

उनको देश में
गरीबी की समस्या पर
बहुत चिंता है।

कहें दीपक बापू चिंता के व्यापारी
ढूंढते  हमेशा
समस्याओं के प्रचार में
नये नये साधन
विज्ञापन से हल करने के लिये
उनको भारी चंदा जुटाने की
बहुत चिंता है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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Tuesday, August 12, 2014

भारत माता के घर का पता-आजादी के पर्व पर व्यंग्य कविता(bharat mata ke ghar ka pata-special hini poem on indepandent day or swantantra diwas diwas par vishesh hindi kavita)

15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस का
महत्व हम नहीं समझे
या कोई हमें समझा नहीं पाया।

जिस अंग्रेजी भाषा से लड़ी हिन्दी
राष्ट्रभाषा के सम्मान के लिये
हमने उसे आज तक लड़ते पाया।

स्वदेशी का नारा लगा था
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान
खोई नहीं उसकी यादें
यदाकदा उसे अब भी सुनते पाया।

अंग्रेजों के गुलामी और मालिक के खेल
क्रिकेट को मनोरंजन का धर्म बना लिया
पागलों की तरह लोगों को
गेंद की तरह उसके पीछे भागते पाया।

आज अंग्रेजों की धरती पर गये लोग
इतराते हैं उनकी तरह
भारत को इंडिया से जूझते पाया।

कहते हैं कि जो अंग्रेजी नहीं पढ़ेगा
वह तरक्की की राह नहीं चलेगा
समझ में नहीं आता
अंग्रेजों को किसने कब कैसे क्यों और कहां
इस देश से भगाया।

कहें दीपक सभी के साथ
हम भी भारत माता की जय का
नारा लगा लेते हैं
हम ढूंढते उसका अपना घर
जिसका पता किसी ने नहीं बताया।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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Monday, August 4, 2014

ताज़े और नये चेहरे-हिन्दी कविता(taze aur naye chehare-hindi poem's)



जहां कभी खेत थे
समय के साथ सीमेंट और लोहे के
चमकदार मकान बन गये।

जहां कभी लगती थी चाय की गुमटी
समय के साथ पांच सितारे लिये
होटल तन गये।

जहां कभी पेड़ पौद्यों से भरे उद्यान थे
समय के साथ इतिहास में दर्ज
महान लोगों के प्रस्तर बुंत जम गये।

कहें दीपक बापू भावनायें यथावत
तब रूप बदलना
नयेपन की पहचान नहीं होती
यह अलग बात है
बाज़ार के सौदागर
बुढ़ा चुके सामानों और चेहरों पर
रंग पोतकर बना देते उनको ताजे और नये।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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