.ऊंची
शिक्षा करें नौकरी पर साहब कहलायें, उच्च पद की छवि देखकर दिल बहलायें।
‘दीपकबापू’
सूने पंजरे में मन का देखें रुदन, वाणी हुई मूक मौन से कितना सहलायें।।
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हाथ में हथियार अमन की करें बात, गरीबी हटाने में लगे अमीरी में बिताते रात।
‘दीपकबापू’
दिन में इश्तिहारी फरिश्ते जैसे फिरें, अंधेरी रात में करें शैतानी घात।।
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दर्द है दिल में थामे शायद इसलिये झंडे, कपड़ा लहराते नीचे हाथ में पकड़े डंडे।
‘दीपकबापू’
पता नहीं कर पाते सच झूठ, भूख पर करते रुदन खाते वह जो अंडे।।
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दिल में बसी माया बाहर छवि संत है, वाणी से बहें उपदेश दान पर उनका अत है।
‘दीपकबापू’
परमात्मा का नाम जपा देखे नहीं, एक ही बात समझी उनका रूप अनंत है।।
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मानव भाव से ही पत्थर भी होते भगवान, हृदय में आनंद जिसके वही होता धनवान।
‘दीपकबापू’
हजारों बंदों का दिल आजमा चुके, अपने भरोसा रही वही होता बलवान।।
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