Tuesday, June 26, 2018

विकास पथ पर धुंआं चढ़ा है=दीपकबापूवाणी (VikasPath uh dhunan chadhahain-Deepakbapuwani)


राजकाज दलालों के हाथ है,
कायदा अब कमीशने के साथ है।
कहें दीपकबापू रखेगा भगवान
सदियों से संसार उसे हाथ है।
---
विकास पथ पर धुंआं चढ़ा है,
जिंदा आदमी मुर्दे जैसे खड़ा है।
कहें दीपकबापू भीड़ बहुत है
फिर भी तन्हाई का खौफ बढ़ा है।।
--
राजपथ पर आमजन नहीं चलेंगे,
जनपथ पर राजा नहीं चलेगें।
कहें दीपकबापू लोकतंत्र में भी
तय हुआ साथ नहीं चलेंगे।
---
रुपहले पर्दे के दृश्य हैं झूठे,
विज्ञापन के साथ दिल लूटे।
कहें दीपकबापू जापते नाम
न आंख रोती न देखे सपने टूटे।
---
पद के मद में बह रहे है।
सुने कम बस अपनी कह रहे हैं।
कहें दीपकबापू जमीन पर खड़े
आमजन मौन सब सह रहे हैं।
---

Wednesday, May 2, 2018

विज्ञापन से भद्दे चरित्र भी चमकाये जाते-दीपकबापूवाणी(iVed Corrector shine by add-DeepakBapuwani)

आकाश से गिरे बड़ी चोट का डर है, पाप बढ़ाये चिंता भले पक्का घर है।
‘दीपकबापू’ भीड़ में जाकर एकांत खोते, इंसानी दिल वहां नफरत से तर हैं।।
----
मिट्टी का इंसान लोहे का यंत्र है बना बिजली की तारों से चरित्र है तना।
‘दीपकबापू’ अपना सच स्वयं से छिपाता, सबकी छवि पर कुहरा छाया है घना।।
---
विज्ञापन से भद्दे चरित्र भी चमकाये जाते, श्रृगार रस से ग्राहक धमकाये जाते।
‘दीपकबापू’ सौदागरों के मायाजाल में फंसे, रुदन से भी हंसते कमाये जाते।।
----
क्या दोष दें जो सड़क से हुए महलवासी, वेशभूषा चमकी पर नीयत रही बासी।
‘दीपकबापू’ जुबानी यकीन उन पर दिखाते, झूठ बेच कमाते जो दौलत खासी।।
---
चंदन जैसी सुंगध किसी इत्र में नहीं है, सुग्रीव जैसा जैसा कोई मित्र नहीं है।
शरीर में भर जाते ढेर विकार, ‘दीपकबापू’ पावन हृदय जैसा केई चित्र नहीं है।।
-------
कोई ठेले कोई दुकान से करता कमाई, देखना यह किसके साथ है सच्चाई।
‘दीपकबापू’ किसी को छोटा बड़ा न समझें, सबके हाथ ने भाग्य रेखा पाई।।
---

Thursday, April 26, 2018

ऊंची शिक्षा करें नौकरी पर साहब कहलायें-दीपकबापूवाणी (OOnchi shikssha karen naukri par sahab kahalayen-DeepakBapuwani)

.ऊंची शिक्षा करें नौकरी पर साहब कहलायें, उच्च पद की छवि देखकर दिल बहलायें।
दीपकबापूसूने पंजरे में मन का देखें रुदन, वाणी हुई मूक मौन से कितना सहलायें।।
---
हाथ में हथियार अमन की करें बात, गरीबी हटाने में लगे अमीरी में बिताते रात।
दीपकबापूदिन में इश्तिहारी फरिश्ते जैसे फिरें, अंधेरी रात में करें शैतानी घात।।
--
दर्द है दिल में थामे शायद इसलिये झंडे, कपड़ा लहराते नीचे हाथ में पकड़े डंडे।
दीपकबापूपता नहीं कर पाते सच झूठ, भूख पर करते रुदन खाते वह जो अंडे।।
---
दिल में बसी माया बाहर छवि संत है, वाणी से बहें उपदेश दान पर उनका अत है।
दीपकबापूपरमात्मा का नाम जपा देखे नहीं, एक ही बात समझी उनका रूप अनंत है।।
----
मानव भाव से ही पत्थर भी होते भगवान, हृदय में आनंद जिसके वही होता धनवान।
दीपकबापूहजारों बंदों का दिल आजमा चुके, अपने भरोसा रही वही होता बलवान।।
----

इस लेखक के समस्त ब्लॉग यहाँ एक जगह प्रस्तुत हैं

हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका

दीपक भारतदीप का चिंतन