Sunday, September 26, 2010

राम मंदिर कब बन पायेगा-हिन्दी हास्य कविता (ayodhya mein ram mandir kab ban paeyga-hindi hasya kavita)

एक राम भक्त ने दूसरे से कहा
‘वैसे तो राम सभी जगह हैं,
हमारे अध्यात्मिक ज्ञान की बड़ी वजह हैं,
घर घर में बसे हैं,
घट घट में इष्ट की तरह श्रीराम सजे हैं श्रीराम
पर फिर भी जिज्ञासावश
अयोध्या के राम मंदिर का ख्याल आता है,
चलो किसी समाज सेवक से चलकर
पूछ लेते हैं कि
वह कब तक बन पाता है।’

सुनकर दूसरे राम भक्त ने कहा
‘भला तुमको भी समाजसेवकों की तरह
अपनी आस्था की परीक्षा क्या ख्याल क्यों आता है,
अरे, अयोध्या के मंदिर का मामला
बड़े लोगों का है
यह पता नहीं उनका वास्तव में
राम भक्ति से कितना नाता है,
अलबत्ता चाहो तो किसी सट्टेबाज या
बाज़ार के सौदागरों से पूछ लेते हैं,
चाहे जो भी जनचर्चा को विषय हो
उसमें अपने भगवान पैसे को पूज लेते हैं,
प्रचारक अब क्रिकेट जैसे खेल में भी
भगवान का स्वरूप गढ़ने लगे हैं
शिकायत भी वही करते हैं कि
अंधविश्वासी लोग बढ़ने लगे हैं,
चुनाव हो या क्रिकेट
जीत हार फिक्स कर लेते हैं,
सौदा और सट्टा मिक्स कर लेते हैं,
समाज सेवा में भी उनके दलाल पलने लगे हैं,
धर्म कर्म भी उनके इशारे पर चलने लगे हैं,
सट्टेबाज़ जिज्ञासाओं और आशाओं की आड़ में कमाते हैं
इसलिये इंसानों को उसमें फंसाते हैं
हम तो बरसों से सुनते हुए राम मंदिर प्रसंग भुला बैठे,
पर बड़े लोग इसे चाहे जब झुला बैठे,
इसलिये सौदागरों से यह पूछना होगा कि
कब राम मंदिर पर उनका दिल आयेगा,
सट्टेबाजों से पूछना होगा
उनका आंकड़ा कब हिल पायेगा,
अपुन ठहरे आम भक्त,
अंदर से पुख्ता, बाहर अशक्त,
अपने राम तो मन में बसे रहेंगे,
एक जगह न ठहर सभी जगह
कल्याण करते बहेंगे,
कण कण में देखते रूप उनका
काम नहीं करती अक्ल इस पर कि
अयोध्या में राम मंदिर कब बन पायेगा।’’
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कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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अयोध्या में राम मंदिर और टीवी चैनल-हास्य कविता (ayodhya meih ram mandir aur tv chainal-hindi comic poem)

टीवी चैनल के कर्मचारी ने
अपने प्रबंध निदेशक से पूछा
‘सर, आपका क्या विचार है
अयोध्या में राम जन्म भूमि पर
मंदिर बन पायेगा
यह मसला  कभी सुलझ पायेगा।’

सुनकर प्रबंध निदेशक ने कहा
‘अपनी खोपड़ी पर ज्यादा जोर न डालो
जब तक अयोध्या में राम मंदिर नहीं बनेगा,
तभी तक अपने चैनल का तंबू बिना मेहनत के तनेगा,
बहस में ढेर सारा समय पास हो जाता है,
जब खामोशी हो तब भी
सुरक्षा में सेंध के नाम पर
सनसनी का प्रसंग सामने आता है,
अपना राम जी से इतना ही नाता है,
नाम लेने से फायदे ही फायदे हैं
यह समझ में आता है,
अपना चैनल जब भी राम का नाम लेता है
विज्ञापन भगवान छप्पड़ फाड़ कर देता है,
अगर बन जायेगा
तो फिर ऐसा मुद्दा हाथ नहीं आयेगा
कभी हम किसी राम मंदिर नहीं गये
पर राम का नाम लेना अब बहुत भाता है,
क्योंकि तब चैनल सफलता की सीढ़िया चढ़ जाता है,
इसलिये तुम भी राम राम जपते रहो,
इस नौकरी में अपनी रोटी तपते रहो,
अयोध्या में राम मंदिर बन जायेगा
तो उनके भक्तों का ध्यान वहीं होगा
तब हमारा चैनल ज़मीन पर गिर जायेगा।

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Sunday, September 19, 2010

अयोध्या का राम मंदिर और जनमानस के राम-हिन्दी कविता (ayodhya mein ram janma bhoomi- hindi poem)

उन्होंने कहा कि
‘तुम अयोध्या के राम मंदिर पर लिखो
उस पर फैसला होने वाला है
जरूर इससे सनसनी फैल जायेगी
तुम्हारी प्रसिद्ध होने भूख भी तभी शांत हो पायेगी।’
मुझे तब अपने घर रखी राम की
तस्वीर दिखाई दी
जिसमें मेरे पूज्य मुस्करा रहे थे
बरबस मैं भी मुस्करा दिया
जैसे इष्ट ने आनंद के झूले में झुला दिया।
मुझे नहीं लगा कि
मेरी कलम इन क्षणो पर अभिव्यक्त हो पायेगी।
मेरे मन में जो हर पल विचरे हैं
उनके प्रति आस्था के बीज
रक्त के कण कण में बिखरे हैं,
अमूर्त रूप से बसे हैं जो आंखों में
तस्वीरों जितने चेहरे भी हैं लाखों में
उनके स्मरण से बढ़ती हुई ताकत
खड़ा कर देती है ज़िदगी के खुशनुमा पलों के सामने
शीतल होती जा रही देह की उंगलियां
ऐसे में कहां आग उगल पायेंगी।
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Saturday, September 11, 2010

रोटी से तसल्ली -हिन्दी कविता (roti se taslli-hindi poem)

किसी की पीड़ा को देखकर कब तक
दिखावटी आंसु बहाओगे,
उसे जरूरत इलाज की है,

किसी की बेबसी पर कब तक
अपनी हमदर्दी दिखाओगे
उसे ज़रूरत  सहारे की है,

कब तक तकलीफों से बचने के लिये
किसी को हंसाओगे
उसे जरूरत दिल से मुस्कराने की है,

खाली लफ्जों से इंसान का पेट नहीं भरता
मगर जिन का भरा है
वह भी बैचेनी में जीते हैं
जरूरत तसल्ली की रोटी
और रोटी से तसल्ली की है।
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कहर की बाढ़- व्यंग्य क्षणिकायें (kahar ki badh- vyangya kavitaen)

नदियां यूं ही नहीं देवियां कही जाती हैं,
तभी तक सहती हैं
अपने रास्तों पर आशियानों बनना
जब तक इंसानों की तरह सहा जाता है,
बादलों से बरसा जो थोड़ा पानी
उफनती हुई अतिक्रमण विरोधी अभियान चलाती हैं।
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यह कुदरत का ही करिश्मा है कि
विकास के मसीहाओं को भी
उसका सहारा मिल जाता है,
जब तक आगे बढ़ने का सहारा मिलता है
झूठे आंकडों से
वह अपनी छाती फुलाते हैं
बरसती है जब कहर की बाढ़
खुलती है पोल
तब दोष देते हैं कुदरत को
फिर राहत से कमाई की उम्मीद में
उनका चेहरा अधिक खिल जाता है।
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