Monday, March 21, 2016

कागजी क्रांतिकारी-हिन्दी कविता(kagzi Krantikari-Hindi Poem)

हाथ हिलाते नारे लगाते
हाड़मांस के बुत
अब क्रांतिकारी कहलाते।

जहान के दर्द का बयान
करते आकर्षक शब्दों में
दवा के लिये बहलाते।

कहें दीपकबापू जीवन में
संघर्ष पथ पर चलते हुए
बरसों बीत गये
कागजी नायक पर्दे पर
आये गये
अपने दिल देह के घाव
लोग दिखे स्वयं ही सहलाते।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com

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Friday, March 11, 2016

हंसना मना-हिन्दी कविता (Hansana mana-Hindi Kavita)

दौलत के दम पर
लगता है यहां
हर रोज नया मेला।

सुरों की महफिलों में
बेसुरे भी चमक जाते
रात में सजे दिन की बेला।

कहें दीपकबापू हंसना मना
लिख दो दिल पर
शब्दों पर सिक्के भारी
हास्य रस में
फूहड़ता का बहुत विष झेला।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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Tuesday, March 1, 2016

बुद्धि का खेल-हिन्दी कविता(Buddhi Ka Khel-Hindi Kavita)

संस्कार संस्कृति में
समाज के आपसी
संघर्ष भी शामिल हैं।

ऊंचे आदर्श से भरी
किताबों के पाठों में
पतन के किस्से भी शामिल हैं।

कहें दीपकबापू बुद्धि से
नाता रखने वाले
चुन लेते फूल जैसे शब्द
हीन ढूंढते उसमें
कांटे जैसे जो अर्थ शामिल हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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