Thursday, July 28, 2016

सोच और कदम-हिन्दी शायरी (Soch aur Kadam-HindiShayri)

अपनी जिंदगी हंसीन
बनाने के लिये
कवायद करनी पड़ती है।

यकीन करो 
वही आता आंखों के सामने
अपनी नज़रे जो गढ़ती हैं।

कहें दीपकबापू नजरिये से
दोस्त या दुश्मन बनते
उस मंजिल की तरफ जाते
इंसान के कदम
सोच जहां बढ़ती है।
‘‘‘‘‘‘‘‘‘‘‘

Sunday, July 17, 2016

अपने घर के असुर को भी देव माने-दीपकबापूवाणी (Apane Ghar ke Asur ko Bhi Dev Mane-DeepakBapuwani)

दिन भर करें आदर्श की बात, शराब के जाम टकराते पूरी रात।
‘दीपकबापू’ चरित्र के वकील, सही दाम मिले तो देते हैं लात।।
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बदलने निकले समाज की तस्वीर, चंदे बटोरते हुए शब्दों के वीर।
‘दीपकबापू’ हिसाब देने से सदा बचते, तख्तों पर जाकर बैठते पीर।।
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दिन में हमदर्दी के नारे सेवक बांटते, रात आपस में जाम टकराते हैं।
‘दीपकबापू’ सेवा बना दी बड़ी कला, चंदे की चाल से लोग चकराते हैं।
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सड़क पर घूम रहा हादसे का डर, अक्ल के अंधे छोड़ चुके घर।
‘दीपकबापू’ अक्ल चौपाये जैसी हुई, चौपाये पर सवार हुए निडर।।
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दिखाने की कर रहे सभी भक्ति, संसार के सामानों में फंसी आसक्ति।
‘दीपकबापू’ बिखरा मन लिये फिरते, खाली बाहें नचाकर दिखाते शक्ति।।
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अपने घर के असुर को भी देव माने, बाहर भले मानस पर कसते ताने।
‘दीपकबापू’ अपराध से फेरें आंख, जब तक आते अपने भंडार में दाने।।
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हर कोई अपने ही काम में लगा है, काम के लिये ही हर कोई सगा है।
‘दीपकबापू’ स्वार्थ में बिताते जीवन, हर कोई पाखंड में सोता जगा है।।
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