Thursday, November 24, 2011

अन्ना हजारे साहिब और शराब-हास्य कविता (anna hazare sahib aur sharab-hasya kavita)

त्यौहार के दिन
फंदेबाज घर आया और बोला
‘‘दीपक बापू आज पहली बार दे रहा हूं सात्विक बधाई,
यह पहला मौका है है
जब मैने किसी खास अवसर पर
अपने मुंह से शराब की एक बूंद भी नहीं लगाई।
सोच रहा हूं पीना छोड़ दूं
वरना कहीं कोई पीट पीटकर कर न दे धराशायी,
भ्रष्टाचार के विरोधी अन्ना साहेब ने
शराबियों को हंटर से पीटने की आवाज जो लगाई।
आप तो जानते हैं,
लोग उनको बहुत मानते हैं,
उनके दर्शन में भले लगता नहीं दम है,
पर नारों का वजन नहीं कम है,
आपने पीना छोड़ दिया है,
इसलिये अपने को उनकी मुहिम से जोड़ दिया है,
इसलिये आप भी शराब के खिलाफ लिखो,
उनके कट्टर समर्थक की तरह दिखो,
अभी तक आप रहे फ्लाप हो
संभव हिट हो जाओ
करने लगें लोग आपकी बड़ाई।’’

सुनकर चुप रहे पहले
फिर गला खंखारकर बोले
‘‘दूसरों के मसौदे देखकर अपनी राह बदलें
यह आमजन को बहुत भाता है,
अन्ना की बात सुनकर
शराब छोड़ने के नारे बहुत लोग लगायेंगे
पर देखेंगे कौन इस पर चल पाता है,
हम जानते हैं
अन्ना 74 बरस में भी स्वस्थ हैं
क्योंकि अपनी जिंदगी में शराब नहीं पिये,
अमेरिका में उनसे भी बड़ी उम्र के लोग जिंदा हैं
जिन्होंने एक नहीं बहुत सारे पैग लिये,
बहुत बुरी चीज है शराब,
फिर भी लोग पीते साथ में खाते कबाब,

दुनियां का सच है
जिस बुराई को दबाने का प्रयास करो
बढ़ती जायेगी,
पहले फ्लाप हो रही
क्रिकेट खेलकर
अन्ना ने उसमें अपने प्रशंसकों लगाया
अब उनके मुख से निकली बात
शराब भी शायद वैसा ही प्रचार पायेगी,
हम ठहरे गीता साधक
बुराई से नफरत करते,
मगर बुरे आदमी में ज्ञान के सूत्र भरते,
अरे,
परमात्मा नहीं खत्म कर पाया
तामसी प्रवृत्ति के लोगों को,
भला क्या भगायेंगे अन्ना संसार से ऐसे रोगों को,
सारे संसार को ठीक करने का ठेका लेना
आत्ममुग्ध करने वाली चीज है,
समझ लो इस भाव में ही
अज्ञान से उपजे अहंकार के बीज हैं,
इससे तो अपने बाबा रामदेव का दर्शन सही है,
कपाल भाति करे जो शख्स स्वस्थ वही है,
हमारा मानना है कि श्रीमद्भागवत गीता के साथ
पतंजलि योग में भरा है ज्ञान और विज्ञान,
देश भूल गया पर
बाकी विश्व रहा है मान,
फिर कौन अपने को बाज़ार से
कभी चंदा मिला है,
खुद नहीं पीते
मगर नहीं पीने वालों से गिला,
समझें जो लोग
अपनी वाणी से करना
भूल जाते निंदा और बड़ाई
हम जैसे लोगों के लिये नारे लगाना संभव नहीं है
कर सकते हैं आध्यात्मिक चिंत्तन
फिर जहां मौका मिला वहीं हास्य कविता बरसाई।
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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Sunday, November 13, 2011

डॉलर और रुपया-हिन्दी हास्य कवितायें (dollar aur rupyaa or rupees-hindi hasya kavitaen comedy poem)

वातानुकूलित कक्षों में बैठे लोग
पसीने के भाग्यविधाता हो गये।
जो सोना किसी की भूख नहीं मिटा सकता
उनके लिये बेशकीमती बन गया,
रोटी बनकर जीवन देने वाले
गेहूं के चमकदार दाने
उनकी नज़रों में मिट्टी हैं
कागज के रुपये से पेट भरने वाले
अमेरिकी डॉलर में खो गये।
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एक अर्थशास्त्री ने दूसरे से कहा
‘‘यार, रुपये का मूल्य गिर रहा है,
यह चिंता की बात है,
हम स्वदेशी है
इसलिये दिन में भी होती बेचैनी
निद्रा से परे हो गयी हमारी रात है।’’

दूसरे ने कहा
‘‘लगता है कि
तुम्हारा किसी अमेरिकी बैंक में खाता नहीं है,
वहां कभी तुम्हारा कोई रिश्तेदार जाता नहीं है,
वरना यह बात नहीं कहते,
रुपये का भाव गिरने का दर्द नहीं सहते,
भईया,
हम तो केवल रहते यहां है,
अपना मन तो वहां है,
डॉलर का रेट बढ़ता है,
इधर हमारा रुपये का भंडार चढ़ता है,
तुम्हारा स्वदेशी तुम्हें मुबारक है,
हम तो वैश्विक दृष्टि वाले
इंडिया तो अपनी मुट्ठी में है
अमेरिका भी अपने साथ है।’’
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कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
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दौलत और पसीना-हिन्दी कविता (daulat aur paseena-hindi kavita)

विकास के रथ का पहिया तेजी से चल रहा है,
रास्ते के गड्ढों में भ्रष्टाचार का चिराग जल रहा है।
कई लोगों के बुझे थे चेहरे जो अब चमकते दिखते हैं
पत्थर की जगहं अब सोने में उनका घर ढल रहा है।
गरीबी के खौफ से लड़ने के लिये तनी हीरे जड़ी तोपें
क्योंकि बेबसी और बेकद्री से पूरा शहर जल रहा है।
कहें दीपक बापू नक्शे पर भले एक देश, पर टूटे हालात हैं
लूटने वाले हाथों मे दौलत, पसीना तो भूख पर पल रहा है।
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कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
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