Friday, June 26, 2015

हवा और जल की ताकत-हिन्दी कविता(hawa aur jal ki taqat-hindi poem)

शहर की गंदगी ढोने वाले
नालों पर तरक्की की
इमारतें खड़ी हैं।

वर्षा ऋतु में उत्साहित जल
ढूंढता सड़क पर
अपनी सहचरिणी रेत
 जो पत्थरों में जड़ी है।

 कहें दीपक बापू हवा और जल
हमेशा चहलकदमी नहीं करते
अपने पथों का कर भी नहीं भरते
विकास के बांध खेलने के लिये
उनके सामने
बन जाते खिलौना
इंसान के कायदों से
प्रकृत्ति की हस्ती बड़ी है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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Sunday, June 21, 2015

काली दौलत के कद्रदान-हिन्दी कविता(kali daulat ke kadradan-hindi poem)


चौराहे पर दिखाते
दबंग का किरदार
घर के बाहर उनके
दरबान खड़ा है।

भलाई के नारे से
जुटा ले आम इंसानों की भीड़
सौदागरों के लिये
वही मेहरबान बड़ा है।

कहें दीपक बापू भरोसे पर
दुनियां चलती है,
गद्दारी भी साथ ही पलती है,
स्वच्छ छवि बनाते सभी
दिलसे काली दौलत का
हर कोई कद्रदान बड़ा है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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Sunday, June 14, 2015

नकली सन्यासियों के हिमालय-हिन्दी व्यंग्य कविता(naqali sanyasiyon ki himalay-hindi vyangya kavita)

ईमानदार हो या नहीं
ज़माने को बहलाने के लिये
दिखना जरूरी है।


किसी के जिस्म पर रहम करें
मगर दौलत और शोहरत के लिये
इंसानों के जज़्बातों से
खेलना जरूरी है।

कहें दीपक बापू सबसे ऊंचा हिमालय
त्यागियों का ही आश्रयदाता है
जज़्बातों के सौदागरों की छवि
सन्यासी जैसी दिखाने के लिये
नकली हिमालय बनाना जरूरी है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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Wednesday, June 10, 2015

योग साधना पर वादविवाद न करें-हिन्दी चिंत्तन लेख(yog sadhanna par vad viivad n karen-hindi chinttan lekh)

         पातञ्जल योग प्रदीप में न तो ओम शब्द की चर्चा है न ही सूर्यनमस्कार जैसे आसन का प्रावधान है। इस आधार पर हम यह कह सकते हैं कि अगर 21 जून 2015 को मनाये जाने वाले योग दिवस के अवसर पर कार्यक्रमों से हटाया जाता है तो आपत्तिजनक नहीं है।  मगर यहां यह भी स्पष्ट कर दें कि पातञ्जल योग में किसी भी प्रकार के विशिष्ट आसन के बारे में कुछ लिखा या कहा नहीं गया।  एक तरह से हम कहें कि पतञ्जलि ऋषि योग के मूल जनक तो हैं पर बाद में भी अन्य महानुभावों ने योग साधना का ं अपने अनुसंधान से विकास किया। श्रीमद्भागवत् गीता तो सहज योग का प्रवर्तक ग्रंथ है।  उसमें ओम को ब्रह्म का रूप माना गया है।  श्रीमद्भागवत गीता में भी आसनों की चर्चा नहीं है।  पतंञ्जलि योग साहित्य तथा श्रीमद्भागवत गीता में आसन से आशय सुख से बैठने की क्रिया से प्रतीत होता है। प्राणायाम पर दोनों ही ग्रंथों में संक्षिप्त पर पर्याप्त चर्चा की गयी है।  निष्कर्ष रूप से कहें तो प्राणों पर नियंत्रण ही योग साधना का एक भाग है।
          प्राचीन काल में सभी लोग परिश्रम से जीवित थे इसलिये व्यायाम की आवश्यकता नहीं समझी गयी।  कालांतर में बदलते समाज को देखते हुए व्यायाम भी आवश्यक माना गया।  सामान्य व्यायाम और योगासनों में अंतर प्राणों के उतार चढ़ाव पर दृष्टि रखने का है। सामान्य व्यायाम में कोई भी व्यक्ति अपने प्राणों के उतार चढ़ाव पर न तो दृष्टि रखता है न ही नियंत्रण करना सीखता है। योगासनों में प्राणों के साथ ही देह की आंतरिक क्रियाओं के साथ ही प्राण के उतार चढ़ाव का पर ध्यान रखना सिखाया जाता है। आसन के बाद प्राणों पर नियंत्रित करने के लिये भी कहा जाता है।
          भारत में अध्यात्मिक ज्ञान से जुड़ा कोई भी विषय रूढ़िवादिता से नहीं बांधा जाता।  यह माना जाता है कि समय के साथ ज्ञान का भी विस्तार होता है। यही सोच हमारे अध्यात्मिक दर्शन की शक्ति तथा समाज का आत्मविश्वास बढ़ाती है। इसके विपरीत भारतीय अध्यात्म से प्रथक विचार रखने वाले लोग हमेशा संकुचित विचारों के साथ जीते हैं।  योग साधना के समय ओम का जाप न करें कोई बात नहीं। सूर्यनमस्कार से कठिनाई हो तो छोड़ दें पर यह सोच ठीक नहीं है कि यह दोनों ही  उनकी विचाराधारा के विपरीत है इसलिये नहीं करेंगे।  वर्तमान रूप में जिस तरह योग साधना की प्रक्रिया चल रही है वह अनेक तपस्वियों और विद्वानों के अनुसंधान से बनी है।  उन निष्कामी लोगों ने समाज के हित के लिये शनैः शनैः योग साधना का आधुनिक रूप बनाया है।  योग साधना के पूर्ण लाभ के लिये इसका वर्तमान रूप बहुत अच्छा है इसलिये ओम जाप तथा सूर्यनमस्कार का विरोध करना ठीक नहीं है। योग तथा ज्ञान साधक होने के साथ ही लेखक होने के नाते हमनें पतंञ्जलि योग साहित्य तथा श्रीमद्भागवत गीता दोनों का अध्ययन किया है। अब भी लगता है कि इनका अध्ययन जारी रखना आवश्यक है।  इसलिये भारतीय अध्यात्मिक दर्शन से प्रथक विचारधारा मानने वाले योग साधना के लिये तत्पर लोगों से हमारा निवेदन है कि वह अपने संकल्प में कुछ नये अनुभव की जिज्ञासा लायें और किसी भी योग क्रिया के प्रति नकारात्मक भाव न अपनाये। अपने परिश्रम की सार्थकता के लिये बृहद सोच रखना आवश्यक है और योग साधना में तो केवल सकल्प का ही खेल है जो दृढ़ होने पर जितवा देता है और क्षीण होने पर मैदान से बाहर कर देता है।
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Saturday, June 6, 2015

पहले स्वयं तो खा लें मलाई-हिन्दी कविता(pahale swayan to khaa len malai-hindi poem)

हमसे तेल लेकर
अपने घर की
रौशनी उन्होंने जलाई।

चहक रहे हैं वह
अपनी मस्ती में
न चिराग अपना न दियासलाई।

कहें दीपक बापू रौशनदान से
हम भी झंाक लेते हैं,
कैसे वह अपनी दरियादिली
अपने मुंह से फांक देते हैं,
ज़माने की क्या करेंगे भलाई
पहले स्वयं तो खा लें मलाई।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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