Monday, December 29, 2014

पीके की तुलना ओ माई गॉड से करना ठीक नहीं-हिन्दी चिंत्तन लेख(PK ki tulna o my GOD se karna theek nahi-hindu thought article)



            हिन्दू धर्म रक्षक पीके का विरोध करते हुए जो तर्क दे रहे हैं वह ठीक है या नहीं यह अलग से विचार का विषय है पर हम परेश रावल, मिथुन चक्रवर्ती, अक्षय कुमार तथा अनेक उच्च कलाकारों से सजी फिल्म  ओ माई गॉड फिल्म हम जैसे अध्यात्मिक चिंत्तकों के लिये अच्छी फिल्भ्म थी। पीके और ओ माई गॉड में भारतीय धर्मों पर व्यंग्य जरूर कसे गये हैं यह सही है पर ओ माई गॉड में श्रीमद्भागवत  गीता के संदेश का महत्व बताया गया था। ओ माई गॉड में अंधविश्वास के विरुद्ध विश्वास की स्थापना का प्रयास था जबकि पीके में अंधविश्वास की आड़ में एक प्रेम कहानी प्रचारित हुआ है। ओ माई गॉड में कोई प्रेम कहानी नहीं थी। इस फिल्म को आधुनिक कला फिल्म भी कहा जा सकता है। पीके में एक प्रेम कहानी के माध्यम से समाज को सुधारने का परंपरागत प्रगतिशील और जनवादी प्रयास करने का संदेश दिया जा रहा है। अनेक लोग इस फिल्म के प्रायोजन से जुड़े तत्वों पर ही संदेह कर रहे हैं जबकि ओ माई गॉड में बिना प्रेम कहानी के मनोरंजन प्रस्तुत कर यह प्रमाणित किया गया था कि फिल्मों के शारीरिक आकर्षण आवश्क नहीं है।
            इसलिये पीके के विरोध करने वालों को सलाह है कि वह ओ माई गॉड से  तुलना के प्रयासों से बचें। इस तरह उनके विरोध को तर्कहीन बनाने का प्रयास हो रहा है। कभी कभी तो यह लगता है ओ माई गॉड के संदेश को अप्रासंगिक करने के लिये यह फिल्म बनी है। अगर पीके का विरोध करते हुए ओ माई गॉड भी वाक्य प्रहार करेंगे उनके सारे प्रयास निरर्थक हो जायेंगे।

दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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Thursday, December 25, 2014

सम्मान और जनहित-हिन्दी कविता(samman aur janhit-hindi poem)



सम्मान पाने के मोह में

संत कवि और समाज सेवक का

वेश लोग बना लेते हैं।



एक से काम बन जाये

दूसरा भी आजमाते

कमजोर दिमाग के होते

मजबूत दिखने के लिये

सिर और मुख पर

केश भी तना लेते हैं।



कहे दीपक बापू प्रचार पाने के लिये

कोई चुटकुले सुनाता,

कोई शायरी गुनगनाता,

पर्दे पर जमे रहने के लिये

हर कोई नया रास्ता बनाता है,

जनहित से वास्ता जताता है,

जरूरत पड़े तो

अपना इलाका देश भी बना लेते हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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Thursday, December 18, 2014

अपना पराया खून-हिन्दी कविता(apna paraya khoon-hindi poem)



अपना खून सभी को
प्यारा है
पराया पानी लगता है।

दूसरे के दर्द पर
झूठे आंसु बहाते
या हास्य रस बरसाते
अपने दिल पर लगे भाव जैसा
 नहीं सानी लगता है।

कहें दीपक बापू औपचारिकता से
निभाते हैं लोग संबंध,
नहीं रहती आत्मीयता की सुगंध
भावनाओं की आड़ में
हर कहीं शब्दों का
दानी ही सभी को ठगता है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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Saturday, December 13, 2014

21 जून को योग दिवस मनाने की निर्णय प्रशंसा योग्य-हिन्दी चिंत्तन लेख(21 june ko yoga diwas manane ka nirnay prashansa yogya-hindi thought article)



            अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर 21 जून को योग दिवस का निर्णय कर लेना अच्छी बात है। अब यह देखना है कि विदेशी विचारधाराओं से निर्मित विशिष्ट दिवस मनाने वाले-यथा वैलेंटाईन, फै्रंड्स तथा लव दिवस-हमारे समाज के नवीन सदस्य इसे कैसे मनाते हैं।  मनाते हैं तो समझते कितना है? हम यह बता दें कि योग साधना के सूत्र बताने वाले हमारे दो प्राचीन ग्रंथ हैं-श्रीमद्भागवत गीता तथा पतंजलि योग साहित्य-जिनमें इसका विशद वर्णन है।  श्रीमद्भागवत गीता में योग सूत्र ज्ञान के साथ विज्ञान के भी सिद्धांत हैं। कभी कभी तो ऐसा लगता है कि भौतिक विज्ञान को समझना योग विज्ञान से अधिक सहज है। भौतिक विज्ञान के अध्ययन में इंद्रियां बाहर सक्रिय होती हैं जो मनुष्य के लिये सहज है जबकि योग विज्ञान में अंतदृष्टि का कार्य करना जरूरी है जो सहज नहीं होता।  भौतिक विज्ञान से सृजित विषय का  विस्तार तथा सीमायें बाह्य चक्षुओं से दिखती हैं जो हमें प्रकृति से प्रदत्त हैं पर योग विज्ञान के प्रयोगों के परिणाम समझने के लिये जिस अंतदृष्टि की आवश्यकता है वह केवल अभ्यास से ही प्राप्त होती है।
            पतंजलि योग साहित्य के योग सूत्र योग साधना की विस्तृत व्याख्या करते हैं मगर उनका संबंध केवल देह से ही प्रतीत होता है। उसमें संसार से जुड़कर योग साधना करने की प्रेरणा का अभाव दिखता है मगर उस कमी को श्रीमद्भागवत गीता पूरा कर देती है।  पतंजलि योग सूत्र के मार्ग पर चलने पर कोई भी साधक पूर्ण योगी बनता है  पर उसमें संसार के विषयों से जुड़ने के सूत्र उसमें नहीं हैं इसलिये साधक में  कर्मों से विरक्ति आने की संभावना भी रहती है।  यही कारण है कि श्रीमद्भागवत गीता में सहज योग का सिद्धांत प्रतिपादित किया गया जिसमें पतंजलि के सूत्र स्वतः शामिल हैं।  इसलिये पतंजलि योग के आधार पर योग साधना करने वालों को श्रीमद्भागवत गीता का अध्ययन अवश्य करना चाहिये।
            भारत में समय समय पर अनेक विशारद योग साधना के प्रचार में नये नये आसन जोड़ते रहे हैं।  कुछ ने आसन तो कुछ ने ध्यान का प्रचार किया पर आष्टांग योग साधना के प्राणायाम भाग के महत्व पर अभी भी अनुसंधान की आवश्यकता है क्योंकि यहीं से साधना का वह दौर प्रांरभ होता है जो समाधि तक पहुंचाता है।
            अंतिम बात यह कि योग दिवस से योग साधना का महत्व बढ़ेगा तक एक नियमित  पाठ्य सामग्री की आवश्यकता होगी।  जहां यह संभावना बनती है कि विश्व में अनेक संस्थायें इसके लिये निष्काम भाव से आगे आकर इसका प्रचार करेंगी वहीं व्यवसायिक संस्थाओं तथा पेशेवर गुरुओं के अपने लाभार्थ कथित नये प्रयोगोें से लाभ उठाने के लिये योग के नाम पर भ्रम फैलाने की आशंका भी रहेगी।  ऐसे में कहीं योग के मूलतत्व कहीं खा न जायें।  इसलिये योग साधना की कोई भी पाठ्य सामग्री का सृजन पतंजलि योग साहित्य, श्रीमद्भागवत गीता तथा प्रतिष्ठत योगाचार्यों की रचित नवीन सामग्री के आधार पर होना चाहिये। अभी हम जो योग का सार्वजनिक प्रचार देख रहे हैं उसमें देह के विकारों को दूर रखने तक की सीमा तय लगती है। इतना ही नहीं अनेक योग शिक्षक तो बीमारों को ही अपने यहां आमंत्रण देते हैं।  योग के नाम पर रोग निवारण शिविर आयोजित होते हैं।  जबाकि सत्य यह है कि योग सहज जीवन जीने की एक पूर्ण कला है।  इसके अभ्यास दैहिक, मानसिक तथा अध्यात्मिक रूप से परिपक्वता आती है। इसके अभ्यास से कोई बीमारी दूर नही होती वरन् साधक स्वास्थ्य के मार्ग का पथिक  हो जाता है।  यही सकारात्मक सोच है जो योग साधक को सिद्ध बना देती है।


दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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Friday, December 5, 2014

विचार बेचे और खरीदे जाते हैं-हिन्दी कविता(vichar beche aur kharide jate hain-hindi poem)



पढ़ी किताबें बहुत
समझा अधिक नहीं
उपधियों भी जुटा लीं
उनके पास अवसर
बोलने के बहुत आते हैं।

भूल जाते हैं विषय का सच
शब्दों के अर्थ
अपने दिमाग से जुटाते
यह अलग बात है
उनके भाव तोलने में कम पाते हैं।

कहें दीपक बापू दौलत से विचार
खरीदे और बेचे जाते हैं,
सौदागर पुराने संकल्प
नया कर बाज़ार में सजाते हैं,
विज्ञापनों की भीड़ में
ठगे जाते हैं पहले
बाद में पुराना सपना
लिफाफे खोलने पर पाते हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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Wednesday, November 26, 2014

भावभंगिमा का खेल-हिन्दी कविता(bhav bhangima ka khel-hindi poem)



गज़ब हैं वह लोग
चेहरे पर जिनके रहती हंसी
हृदय में घात छिपाते हैं।

स्वार्थ के लिये
पहले हाथ जोड़ते
फिर लात दिखाते हैं।

कहें दीपक बापू भाव भंगिमा
करे देती हैं हमें मंत्रमुग्ध
चालाक लोगों पर
जिनके शब्द कोष में
सहानुभूति के अर्थ नहीं होते,
दर्द हरने का करते व्यापार
दवा की नदी में
पैसे से  हाथ धोते,

अपरे चरित्र लगे खून के छींटों पर
चर्चा करो तो
विरोधी की मात दिखाते हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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Tuesday, November 18, 2014

योग खिलाड़ी और मन का खेल-हिन्दी कविता(yog khiladi aur man ka khel-hindi poem)



घर में भर लिया
लोहे, लकडी और प्लास्टिक का
मनुष्य ने बदबूदार सामान
बेचैन मन के साथ
बाहर चैन की तलाश करता है।
पैसे के जोर पर
बनाता सर्वशक्तिमान के दरबार
नकली तारे लाकर
अपने घर का आकाश भरता है।
कहें दीपक बापू मन का खेल
योग खिलाड़ी ही जाने
नियंत्रण में हो तो
गेंद की तरह आगे बढ़ायें
नहीं तो दौड़ाकर
माया की तरफ
देह का नाश करता है।


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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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Saturday, November 8, 2014

छद्म नायकों से सतर्कता जरूरी-हिन्दी व्यंग्य कविता(chhadma naykon se satarkta jaroori-hindi satire poem)



स्वयं पर नहीं आती हंसी जिनको
दूसरों को चिढाकर
परम आंनद पाते  हैं।

स्वयं घर से निकलते
पहनकर धवल कपड़े
दूसरे पर कीचड़ उछालकर
  रुदन मचाते हैं।

जिन्होंने अपना पूरा जीवन
पेशेवर हमदर्द बनकर बिताया
ज़माने के जख्म पर
नारों का नमक वही छिड़क जाते हैं।

बंद सुविधायुक्त कमरों में
विलासिता के साथ गुजारते
 रात के अंधेरे
दिन में चौराहे पर  आकर
वही समाज सुधार के लिये
हल्ला मचाते हैं।

कहें दीपक बापू बचना
ऐसे कागजी नायकों से
नाव डुबाने की कोशिश से पहले
उसे दिखावे के लिये बचाते हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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Saturday, November 1, 2014

मनुष्य देह में पशु-हिन्दी कविता(manushy def mein pashu-hindi poem)



एक उड़ते हुए पत्थर से
फूटता सिर किसी का
पूरे शहर में
दंगल शुरु हो जाता है।

शांति के  शत्रु
मौन से रहते बेचैन
जलते घर और कराहते लोग
सपनों में देखना उनको पसंद है
जब उड़ाते हैं नींद ज़माने की
करते अपना हृदय तृप्त
शहर में अमंगल गुरु हो जाता है।

कहें दीपक बापू मनुष्य देह में
पशु भी जन्म लेते हैं
रक्त की धारा बहाने पर रहते आमादा
जब लग जाता दांव उनका
चहकता शहर भी
जगल हो जाता है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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Saturday, October 25, 2014

अक्ल की रौशनी-हिन्दी कविता(akla ki roshani-hindi poem)




अंधेरी राह पर
रोशनी के बिना
चल सकते हैं हम।

मुश्किल है अंधेरे ख्यालों से
जिंदगी का निभना
जब लोग अपनी दिल की सोच में
 पालते महंगे सपने
अक्ल की रौशनी कर देते कम।

कहें दीपक बापू मतलब की
चुकाओ कीमत
वफादार बहुत मिल जाते हैं,
सिक्के बांटो तो
लोग समूह में प्रशस्ति गान गाते हैं,
जिंदगी के आनंददायक क्षण
बीत जाते भीड़ में हंसते हुए
आपत्तियों बनती जब मेहमान
अकेले में आखें हो जाती नम,
जिंदगी में जीतने की चाहत
जिनको होती है
वह किसी की तरफ
आंर्त भाव से नहीं निहारते
लक्ष्य की तरफ बढ़ाते
अकेले ही अपने कदम।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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