Friday, September 26, 2014

सुविधा युग में स्वच्छता-हिन्दी व्यंग्य कविता(suvidha yug mein swachchata-hindi vyangya kavita,clean and green city-A hindi satire poem)



पूरे शहर में स्वच्छता
जरूर होना चाहिए
सभी मानते हैं।

लोग फैलाते हैं
स्वयं गंदगी जानबूझकर
कोई आयेगा साफ करने
यह जानते हैं।

कहें दीपक बापू सुविधा युग
जब से आया है,
ज़माने की बुद्धि पर
अंधेरा छाया है,
शराब और सिगरेट
बन गये संस्कार का हिस्सा,
पहले पीते थे छिपकर
अब सुनाते लोग शान से किस्सा,
गंदगी फैलाने में सभी हो गये माहिर
साफ करने की बात पर
भौहें तानते हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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Saturday, September 20, 2014

युग बदल गया-हिन्दी कविता(yug badal gaya-hindi poem




जहां तक देखो
फैला है चारों तरफ
नरमुंडों का समंदर।

फिर भी उठती नहीं
दिखती संवेदनाओं की लहरें
लगता है जैसे भाव का बहना
अब होता नहीं हृदयों के अंदर।

कहें दीपक बापू युग बदल गया
यह कहा जाता है,
विकास के बाद
विनाश का मार्ग भी पाया जाता है,
नाच रहा है दौलतमंदों के डमरू पर
हर इसांन खुश होकर
जैसे एक फिर बन गया बंदर।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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Saturday, September 13, 2014

एक दिन के लिए हिंदी का मेला-14 सितंबर हिन्दी दिवस पर व्यंग्य कवितायें(ek din ke liye hindi ka mela-A hindi sAtire poem on 14 september hind day,hindi diwas or hindi divas)

  

फुर्सत में लिखी चंद कवितायें
हिन्दी सेवी की पदवी का
खिताब पाने लगे।

चालाकियों से चढ़ गये
साहित्य का शिखर
हिन्दी दिवस के कार्यक्रमों में
माननीय कहलाने लगे।

कहें दीपक बापू शब्दों का खेल
केवल रचनाओं से नहीं खेला जाता,
समाज के सच को कलमबद्ध करना
अकेलेपन में सहज झेला नहीं आता,
कला और साहित्य के मेलों में
कोई पधारता चेहरा दिखाने,
कोई प्रवचन करता दूसरों को सिखाने,
परायेपन का बोध है
राष्ट्रभाषा हिन्दी से
मगर एक दिन के लिये
बन जाते सभी सगे।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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Friday, September 12, 2014

आओ आनंद मनायें-14 सितम्बर हिन्दी दिवस पर विशिष्ट व्यंग्य कविता(aao anand manayen-A Hindi satire poem on 14 september hindi day, hindi diwas,hindi divas)




हमारी मातृभाषा हिन्दी है
आओ हम सब मिलकर
समूह में गायें।

वाणी से भले ही
निकलते हैं हिंग्लिश के शब्द
पर हमारे हृदय की साम्राज्ञी
हिन्दी भाषा है
सारे संसार को समझायें।

कहें दीपक बापू अंग्रेजी कालीन पर
भले चलते हैं हमारे कदम
उसके नीचे धूल की तरह
हिन्दी पड़ी हुई अभी
हमने उसे झाड़कर
बाहर नहीं फैंका
आओ यह बात स्वयं को
समझाकर आनंद मनायें।
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Tuesday, September 9, 2014

स्वर्ग बन जाता नरक-हिन्दी कविता(swarg ban jata narak-hindi poem;s)



इंसान बनाता मेहनत से महल
प्रकृति पल भर में
उसे ढहा देती है।

हम पुकारें जिसे स्वर्ग
पानी के साथ मिलकर हवा
उसे नरक बना देती है।

नदी को बांधते हैं
मगर नहीं मानती वह भी
मौका मिलते ही
किनारे भी बहा देती है।

कहें दीपक बापू जल प्रलय
पढ़ी थी ग्रंथों में
अब मिटती नहीं धरती,
बना दी है इंसानों ने ही
उसकी हस्ती,
यह अलग बात है
वह उनके सजाये सपनों के
टूट जाने पर
बहते खून में नहा लेती है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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Wednesday, September 3, 2014

पूर्व से ही आ सकती है स्वतंत्र मानसिकता की खुशबू-हिन्दी चिंत्तन लेख(poorva se hee aa saktee hai swatantra mansikta ki khushbu-hindi chinntan article)




            अभी हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री श्रीनरेंद्रमोदी ने जापान का दौरा किया। वहां उन्होंने वहां के प्रधानमंत्री को भारत का पवित्र ग्रंथ श्रीमद्भागवत गीता उपहार में दिया।  इस यात्रा के राजनीतिक संदर्भ चाहें जो भी हों अध्यात्मिक विचार धारा के पोषक भारतीय समाज के लिये यह एक नवीन विषय बन गया है जब किसी राजनीतिक मंच पर श्रीगीता का नाम इस तरह लिया गया हो।  अभी तक भारत के शिखर पुरुष पश्चिम की तरफ देखते थे पर यह पहला अवसर है जब पूर्व से रिश्ता बनाने में विशेष दिलपस्पी देखी गयी है।
            इस पर पारंपरिक दृष्टिकोण से अलग हटकर विचार करें तब यह निष्कर्ष सामने आता है कि हम अपने भौतिक विकास का स्वरूप पश्चिम की बजाय पूर्व के आधार पर तय करें तो शायद बेहद अच्छा रहे।  जापान दुनियां एक धनी राष्ट्र है।  द्वितीय विश्वयुद्ध में उस पर अमेरिका ने परमाणु  बम फैंका था।  यह मलाल आज भी वहां के लोगों के मन में है।  अमेरिका ने अभी तक एशियाई देशों पर ही बम बरसाये हैं।  दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि जिन राजपुरुषों ने अमेरिका से दोस्ती की अंततः वह उनका ही दुश्मन बना। सद्दाम हुसैन इसका एक सबसे अच्छा उदाहरण है। ऐसे में उस पर यकीन करना हमेशा ही कठिन रहता है।  मूलतः भारत का अमेरिका से कोई बैर नहंी है पर उसकी रणनीतियां हमेशा ही संदिग्ध मानी जाती हैं।  दूसरी बात यह कि वह दुनियां का सबसे अमेरिका विश्व  का सबसे शक्तिशाली राष्ट्र है पर उसकी अर्थव्यवस्था पराश्रित मानी जाती है।  इसके विपरीत जापान एक आत्मनिर्भर राष्ट्र है।  सबसे बड़ी बात यह कि वह एशियाई क्षेत्र होने के साथ ही सहधर्मी राष्ट्र है।  वहां बौद्धधर्म प्रचलित हैं जिसके प्रवर्तक भगवान बौद्ध हमारी धरती पर ही प्रकट हुए थे। जापान विश्व में दूसरों को कर्ज और दान देने वाला राष्ट्र है पर यह बात अलग है कि छोटा होने के कारण उसे वह सम्मान नहीं मिलता।  अगर भारत जैसा विशाल देश उसके साथ हो जाये तो सामरिक दृष्टि से भी उसका आत्मविश्वास बढ़ सकता है।  हमारे यहां का भी जाता है कि हरा भरा वृक्ष ही इंसान का सहायक होता है सूखा पेड़ किसी काम का नहीं हो सकता।
            तकनीकी रूप से जापान हमारे पड़ौसी चीन से कहीं बेहतर है। अमेरिका हमारे साथ संपर्क इसलिये बढ़ा रहा है क्योंकि यहां उसके लिये रोजगार के अवसर हैं।  जापान को पूंजी लगाने का स्थान चाहिये जिससे हमारे विशाल राष्ट्र में हमारे लिये तो हमें भी रोजगार के अवसर बन सकते हैं। सांस्कृतिक और वैचारिक रूप से भी जापान हमारा निकटस्थ सहयोगी बन सकता है। मूल बात यह कि हम आर्थिक, वैचारिक, साहित्यक तथा संस्कारिक दृष्टि से हम पश्चिम की तरफ देखकर निराश हो चुके हैं।  पश्चिम से आई हवा ने हमारे यहां तनाव पैदा किया है इसलिये अब पूर्व की तरफ रुख करना चाहिये। हम पश्चिम की साम्राज्यवादी और मध्य एशिया की हिंसक गतिविधियों से जुड़कर अपना समय व्यर्थ ही बरबाद करते हैं।  मध्य एशिया में हिंसक संघर्ष कभी थम नहीं सकता।  ऐसा लगता है यह उनका स्वभाव है। वर्षों पुराना इतिहास गवाह है कि पश्चिमी राष्ट्र साम्राज्य बढ़ाने तो मध्य एशिया के राष्ट्र आपस मे उलझकर विश्व में हिंसा का संकट पैदा करते रहे हैं।  दूसरी बात यह कि पश्चिमी से आई हवा यहां गुलाम पैदा करती है जबकि पूर्व से आई हवा में स्वतंत्र मानसिकता की खुशबू आती है।  वैसे भी हमारे देश में सदियों से पूर्व की तरफ देखकर पूजा, आरती या प्रणाम करने की परंपरा रही है।
            एक सज्जन पलंग पर दो वर्ष तक पश्चिम की सिर कर सोते रहे।  लगातार तनाव में गुजारा। एक दिन उनके ही अध्यात्मिक ज्ञानी मित्र ने  उनको घर पर ऐसा करते पाया तो उसे चेताया कि पूर्व या दक्षिण की तरफ सिर रखकर सोया करो। उत्तर की तरफ सिर करने से से उष्णता तो पश्चिम की तरफ सोने से कुंठा पैदा होती है।  उस मित्र को यह बात लग गयी।  बाद में उन्होंने बताया कि उस अध्यात्मिक मित्र की सलाह मानने के बाद वह अलग तरीके से ही सुखदायक जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
            अध्यात्मिक तथा ज्ञान साधक पूर्व की तरफ मुख कर ही योग साधना करते हैं। लोग उगते हुए सूरज को जल देते हैं जो पूर्व से ही उगता है।  पश्चिम के लोग हमारे आर्थिक सहायक कतई नहीं है।  जिस तरह चीन और जापान की चीजें बाज़ार में बिकती हैं उससे यह साफ लगता है कि विकास के तत्व तो पूर्व में ही मौजूद हैं।  बहरहाल यह हमारी एक राय भर है जो अध्यात्मिक लेखक होने के नाते लिखी गयी है जो कि इस अवसर श्रीमद्भागवत गीता का उल्लेख होने पर पैदा हुई।  यह किसी आर्थिक या राजनीतिक विश्लेषक की रचना नहीं है जिसमें पूर्व बेहतर संपर्क होने से अन्य लाभों या हानियां का आंकलन प्रस्तुत किया जा सके।
           

दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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