Tuesday, May 19, 2015

नीयत का कालापन-हिन्दी कविता(neeyat ka kalapan-hindi poem)


जिस्म और दिल के
ज़ख्म पूछने यूं ही
लोग नहीं आते हैं।

जख्मी का हाल देखकर
होती उनको तसल्ली
ऐसे हादसे उनके
सामने नहीं आते हैं।

कहें दीपक बापू  अपने जज़्बात
छिपाने की कितनी भी
करें चालाक लोग
हमदर्दी के हर लफ्ज़ में
अपनी नीयत के कालेपन से
खुद को तो बंधा ही पाते हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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