दादा ने पोते से कहा
‘यह रोज बिज़ली चली जाती है,
तुम निकल जाते हो बाहर खेलने
किताबें और कापियां यहां खुली रह जाती हैं।
ले आया हूं तुम्हारे लिये माटी के चिराग,
जो रौशनी करने के लिये लेते थोड़ी तेल और आग,
तुम्हारे परदादा इसी के सहारे पढ़े थे,
शिक्षा के कीर्तिमान उन्होंने गढ़े थे
मेरे और अपने पिताजी की राह
अब तुम्हारे लिए चलना संभव नहीं,
बिज़ली कटौती के घंटे बढ़ते जा रहे हैं
आपूर्ति जीरो पर न आयें कहंी,
इसलिये तुम तेल के दीपक की रौशनी में
पढ़ना सीख लो तो ही तुम्हारी भलाई है,
वरना आगे कॉलिज की भी लड़ाई है
देश की विकास भले ही बढ़ती जाये
पर बिज़ली कटौती होते होते आपूर्ति जीरो हो जायेगी
अखबारों में रोज खबर पढ़कर
स्थिति यही नज़र आती है।
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कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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