Wednesday, July 22, 2015

साहित्य के कदम-हिन्दी कविताsahitya ke kadam-hindi poem)


किताब हुई महंगी
शब्द हुए सस्ते
रचनाकार कहीं खो गये हैं।

पैसे और पदवाले
लिखने लगे हैं कवितायें
उनकी कामयाबी की कहानियों में
साहित्य के कदम खो गये हैं।

कहें दीपक बापू सौदागरों से
बाज़ार चलते हैं
चाटुकार उनके चरण
चाटते हुए पलते हैं,
फिर भी मरे नहीं सत्य शब्द
आकर्षक मनोरंजन के सौदों में
लोग जरूर खो गये हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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