नींद में आने वाले सपने नींद खुलते टूटते ही हैं, जब तक स्वार्थ पूरा हो
ठीक वरना अपने रूठते ही है और जिंदगी की राह में चलने वाले मित्र मोड़ आने पर छूटते
ही हैं। यह अच्छा ही है प्रकृत्ति ने
मनुष्य की स्मरण शक्ति को सीमित रखा है वरना लोग पुराने संस्मरणों पर अपना जीवन
नष्ट कर डालते। खाली समय में यादें परेशान करती है इसलिये सामान्य मनुष्य एकांत
में चिंत्तन की बजाय चिंतायें पालते हैं। इससे बचने के लिये हर मनुष्य निरंतर नये
विषयों की तरफ अपना कदम बढ़ाता है ताकि वह अपना दिमाग चलायमान रख सके।
इसके बावजूद चालाक लोगों को यह भ्रम नहीं पालना चाहिये कि पूरे समाज की
स्मरण शक्ति क्षीण है। ऐसे लोग कहते हैं कि चाहे जो कर लो कोई परवाह नहीं समाज कुछ
समय चर्चा कर भूल जायेगा। ऐसे लोगों का यह
समझना चाहिये कि मनुष्य की स्मरण क्षीण जरूर होती है पर मृत नहीं होती। चाणक्य ने कहा है कि जिस तरह हजार गायों के बीच
बछड़ा जिस तरह अपनी मां के पास पहुंच जाता है वैसे ही इंसान के पाप भी उसका पीछा
करते हैं। अपने कारनामों से समाज में विष फैलाने वाले लोगों भले ही कुछ समय बाद
भुला दिये जायें पर समय आने पर फिर वह उन्हें दंड अवश्य देते हैं। तब लोगों की के स्मरण स्थल में उनके प्रति जो
भाव लुप्त था वह उबर कर आ ही जाता है। तब वह उनके दंडित होने पर प्रसन्न भी होते
हैं।
योग तथा ज्ञान साधक सदैव इस बात का प्रयास करते हैं कि उनके हाथ से कोई ऐसा
काम न हो जिससे उनका स्वयं का मन पश्चाताप की अग्नि में जले। वह अन्य लोगों में अपनी छवि की परवाह नहीं करते
पर समाज ऐसे ज्ञानियों को अपने मस्तक पर इस तरह धारण करता है कि वह कभी उसके स्मरण
क्षेत्र से लुप्त नहीं होते।
प्रस्तुत है इस पर एक कविता
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स्मरण में नहीं है
वह मित्र
जिंदगी के सफर में जो साथ थे।
भूल गये उनकी ताकत
हमारे सहारे जिनके हाथ थे।
कहें दीपक जिंदगी का रथ
चलता है इतनी तेजी से
आंखों के सामने गुजर जाते
बड़े बड़े पेड़
फसलों से भरे खेत
गगनचुंबी इमारते
न हमने पूछा
न किसी ने बताया
कौन उनके नाथ थे।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.comयह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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