अपनी बिरादरी के बाहर के शिखर पुरुषों पर संवेदनहीन होने का आरोप लगाने
वाले टीवी चैनलों के प्रचारक यह बतायेंगे कि अपनी ही बिरादरी के एक सदस्य की मौत
पर उन्हें वाकई अफसोस हुआ? हुआ तो फिर यह बतायें कि उसकी मौत को राजनीतिक विषय से जोड़ते हुए वह जो बहस
कर रहे थे उसमें हर एक सवाल के बाद वह जवाब आने से पहले ही विज्ञापन प्रारंभ क्यों
कर देते हैं? जवाब के बाद फिर विज्ञापन प्रारंभ हो जाता था। वह जिस तरह अपनी ही बिरादरी के सदस्य की मौत को
आर्थिक रूप से भुना रहे थे उसे भारतीय समाज में संवेदनहीनता ही माना जाता है। कहीं
किसी बाज़ार में किसी दुकानदार की मौत होती है तो वहां के दुकानदार अपनी दुकान बंद
शोक मनाते हैं। टीवी चैनल बंद नहीं हो
सकते पर विज्ञापन पूरे दिन तो नहंीं कम से कम अपने सहधर्मी की मौत पर बहस के समय
तो बंद हो सकते थे। एक तो हमें उस पत्रकार
की मौत पर एक बुद्धिजीवी होने के नाते बहुत अफसोस हुआ उसे इन विज्ञापनों ने
व्यवधान पैदा कर दिया।
उस पत्रकार की मौत पर हमें वाकई अफसोस है। वह अपने घर का अकेला कमाने वाला
था। इसलिये भगवान से प्रार्थना है कि उसके परिवार को यह दुःख झेलने की शक्ति दे वह
टीवी चैनल वालों से अनुरोध है कि उसके परिवार की सहायता करना न भूलें। भारतीय समाज
भले ही उपभागों मे बंटा है पर उसमें यह परंपरा है कि सहधर्मी, सहकर्मी और सहमर्मी
विपत्ति के समय पर सहायता करते ही हैं।
दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.comयह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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