Sunday, February 7, 2010

चिल्लाने की बारी -हिन्दी व्यंग्य कविता (hindi comic satire poem)

भ्रष्टाचार,

अत्याचार

और व्याभिचार को भी

जाति, भाषा और धर्म के नाम पर

बांटने की कोशिश जारी है,

अक्लमंद दिखाते हैं बहादुरी

अपने अपने हिस्से की शिकायतें उठाने में

शब्द खर्च करते

दूसरे की कमियां गिनाने में

हर हादसे पर देखते हैं बस यही कि

किसके चिल्लाने की बारी है।

कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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