Thursday, February 25, 2010

वाद प्रतिवाद तो चलते रहेंगे-आलेख (disscution -hindi article)

हिन्दी ब्लाग जगत पर जब इस लेखक ने लिखना शुरु किया तो उसका केवल एक ही उद्देश्य था कि अपनी अभिव्यक्ति के लिये इस सुविधा का अधिक से अधिक उपयोग करना। एक आम लेखक के लिये सबसे बड़ी उपलब्धि इस बात में ही होती है कि उसकी रचना भीड़ में पहुंच जाकर पाठक जुटाये। समाचार पत्र पत्रिकाओं में छपने पर अनेक पाठक मिलते हैं पर एक सामान्य लेखक के लिये नियमित रूप से वहां छपना आसान नहीं है। अंतर्जाल का एक यह दोष है कि किसी भी पाठ के पाठक तत्काल नहीं मिलते पर इसका एक गुण है कि आपने लिख दिया तो वह पढ़ा ही जाता रहेगा। उसके संप्रेक्षण के लिये आपको दोबारा प्रयास की आवश्यकता नहीं है। समाचार पत्र पत्रिकाओं में जगह न मिल पाने की मजबूरी एक आम लेखक के साथ होती है इससे यह लेखक भी ग्रसित रहा है पर किसी विषय पर लिखने या न लिखने की मजबूरी इससे नहीं जुड़ी। कम से कम कोई इस लेखक को इस बात के लिये बाध्य कोई नहीं करता कि इस पर लिखो या न लिखो। यह जवाब है उस मित्र जनवादी लेखक का जिसने इस लेखक के एक ब्लाग पर लिखे गये लेख पर प्रतिवाद रूप में पाठ लिखते हुए यह बात लिखी थी कि ‘उनकी शायद कोई मजबूरी रही होगी।’
‘हैती के भूकंप का ज्योतिष, साम्यवाद और पूंजीवाद से क्या संबंध? इस विषय पर लिखे गये लेख के जवाब में उन उस जनवादी लेखक ने अपने समर्थन में वही बातें दोहराई जिससे पढ़कर वह पाठ लिखा गया था। उसने इस लेखक की मजबूरी बताते हुए इशारा किया पर आगे वही लेखक उस पाठ की बातों से सहमति भी जताता रहा, मगर वहां उसने इस ब्लाग लेखक की तरफ इशारा नहीं किया। उस लेखक द्वारा लिखे गये पाठ का आशय यह था कि हैती के भूकंप के लिये वहां की जमीन का पूंजीवादियों द्वारा किया गया दोहन जिम्मेदारी है। साथ ही यह भी अगर वहां साम्यवाद होता तो इतनी बड़ी जनहानि नहीं होती। जनहानि होती तो तत्काल सहायता पहुंच जाती, आदि आदि।
उसकी सहमति एक पैराग्राफ में थी। इस ब्लाग के लेखक ने लिखा था कि विश्व भर में भूकंप आने का कारण यह भी है कि अनेक तरह के परमाणु विस्फोट किेये गये हैं जिससे पृथ्वी का क्षति पहुंची है पर यह अकेला कारण नहीं है। हमारे लिखने का आशय यह था इसके लिये साम्यवादी देश ही अधिक जिम्मेदारी है जो आये दिन अमेरिका की होड़ में लग कर ऐसे विस्फोट करते हैं-चीन और सोवियत संघ इसके उदाहरण हैं। प्रतिवाद करते हुए पाठ पर इस विषय पर सहमत होने के बावजूद वह लेखक दोनों देशों का नाम लेने से बचते रहे। साथ ही पहले मूल पाठ फिर प्रतिवाद में लिखे गये पाठ में वह साम्यवाद का गुणगान करते रहे। विस्फोटों से पहुंची पृथ्वी को पहुंची क्षति को स्वीकार किया, इसके लिये वह बधाई के पात्र हैं, क्योंकि यह उनकी श्रेष्ठता का प्रमाण है वरना यहां तो लोग केवल असहमति वाले विषय पर ही लिखकर इतिश्री करते हैं पर उनका पाठ पढ़कर एक बात मन में आयी कि आखिर वह किसलिये साम्यवादी विचारधारा मानने वाले देशों को दूध का धुला समझते हैं। पृथ्वी के साथ मनुष्य की छेड़छाड़ इतना छोटा मुद्दा नहीं है जितना हमारे मित्र समझते हैं।
दूसरी बात यह लेखक जनवादी विचाराधारा के लेखकों को साफ बताना चाहता है कि हम उनके साथ बहस करने की योग्यता नहीं रखते। इतिहास की बात करें तो यहां स्थिति यह है कि हर कोई अपने हिसाब से इतिहास सुनाता है और उस यकीन होने के दबाव डालता है। हम जैसे आम लेखक के लिये यह संभव नहीं है कि वह उनका विरोध कर अपनी जान सांसत में डाले। जिन लोगों ने हमारे ब्लाग देखें हैं उनको यह पता है कि कहीं कुछ योजनाबद्ध ढंग से नहीं लिखा। जो मन में आया लिख दिया। कभी अध्यात्मिक लेख तो कभी हास्य कविता! कभी आलेख तो कभी व्यंग्य! मुख्य लक्ष्य है कि आम लेखक की अभिव्यक्ति की धारा तीव्र गति से प्रवाहित हो। इस देश में ढेर सारे लेखक हैं पर सभी विशिष्ट हैं। आम आदमी की अभिव्यक्ति उनके लेखों में नहीं दिखती क्योंकि वह उसके पढ़ने कें लिये नहीं लिखते बल्कि उसके लिये लिखा यह दिखाकर विशिष्ट वर्ग में अपनी इज्जत बढ़ाते हैं। वह अपने विषय आम पाठकों से चुनने की बजाय उन पर थोपते हैं।
विचारधाराओं के आधार लिखने वाले लेखकों से हमारा कोई तारतम्य नहीं है और उनकी आपसी बहसों में हम केवल उसी विषय को छूते हैं जिसमें आम आदमी के लिखने पढ़ने लायक कुछ हो। विचाराधाराओं के पीछे संगठन है और वह लिखने वाले को हर कदम पर सहायता करते हैं पर एक आम स्वतंत्र और मौलिक लेखक के लिये तो अकेले चलने का अलावा दूसरा कोई मार्ग नहीं है। एक आदमी का दर्द क्या होता है, यह बात हर लेखक जानता है जो स्वयं लिखता है। उस जनवादी विचारक लेखक की प्रशंसा करने का मन करता है जिसने अपने हाथों से कंप्यूटर पर टाईप कर अपना पाठ प्रकाशित किया। उसने नाम न लिखकर मर्यादा का पालन किया जो कि इस बात का प्रमाण है कि विचारक भिन्नता के बावजूद वह श्रेष्ठ व्यक्ति हैं।
दूसरी बात यह कि इस लेखक ने अपने जीवन की शुरुआत नवयुवावस्था एक मजदूर के रूप में ही की थी। जूतों की दुकान पर पेटी ठोकने और ठेले चलाने का काम किया। पेन के कारखाने में हाथ से चलने वाली मशीन पर भी पसीना बहाया। अनेक बार कीलें पैर में लगी। जब इस लेखक के अमीर परिवारों के मित्र मजे करते थे तब यह पसीना बहाता था। तब भी अपनी हालातों पर रोना नहीं आया क्योंकि आत्म अभिव्यक्ति के लिये कलम जो पकड़ी थी। यकीन था कि अपना समय आयेगा। नहंी आया। मध्यमवर्ग से आगे नहीं बढ़ पाये पर कभी अफसोस नहीं रहा। अलबत्ता शिक्षा और लेखन क्षमता की वजह से कुछ समय पत्रकारिता में बिताया। हिन्दी टंकण के कारण अपने जीवन की शुरुआत एक समाचार पत्र में कंप्युटर आपरेटर के रूप में ही हुई।
इस छोटी सी कहानी में बहुत बड़ा अनुभव छिपा है। जीवन में कभी किसी का मुंह नहीं ताका। परिश्रमी व्यक्ति हैं इसलिये यहां लिख रहे हैं। यहां लिखने का पैसा नहीं मिलता। जब लोग टीवी देखने में व्यस्त होते हैं तब हम यहां लिखते हैं। आज भी साइकिल का पंचर जुड़वाने स्वयं ही जाते हैं। आर्थिक रूप से अधिक संपन्न नहीं हैं पर इंटरनेट का खर्च उठाने का सामथ्र्य है। ऐसे में किसी भी विचाराधारा के लेखक का कुछ पढ़ते हैं तो हम भी लिखने लगते हैं। यह प्रतिक्रियात्मक लेखन तभी करते हैं जब लिखने लायक साहित्यक विचार हमारे मन में नहीं आता। अलबत्ता दर्द की अभिव्यक्ति कभी व्यंग्य के रूप में हो जाये तो उसे रोकना कठिन है। अपने संघर्ष के दिनों में हमारे दो ही शौक थे लिखना और किताबें पढ़ना। इसी कारण हर विचारधारा के उद्गम स्तोत्रों को जानते हैं। उनके शीर्ष पुरुषों की जीवनी को पढ़ा है। किसी विषय पर बिना अधिकार के नहीं लिखते। यही कारण है कि जनवादी लेखक अगर हमारे प्रतिवाद पर पाठ लिखता है तो उसमें हमारे साथ कहीं न कहीं सहमति भी जताता है। यह उनकी श्रेष्ठता के साथ ही हमारे चिंतन की मौलिकता का प्रमाण भी है। यह पाठ हमने एक तरह से सूचनार्थ लिखा है क्योंकि आगे कुछ ऐसे चिंतन आने वाले हैं जो विचाराधाराओं में बहने वाले लोगों में असहमति पैदा कर सकते हैं तब यह आक्षेप लगाना उनके लिये कठिन होगा कि हम किसी विचाराधारा या संगठन के लिये काम कर रहे हैं। इस लेखक का पूरा जीवन एक आम आदमी के रूप में ही बीता है और हिन्दी ब्लाग जगत में स्वतंत्र और मौलिक रूप से लिखने वालों से मित्रता करने की इसकी दिली इच्छा है। वाद प्रतिवाद तो चलते ही रहेंगे उनसे मन मैला नहीं करना चाहिये। न नाम लेकर किसी पर आक्षेप करना चाहिये क्योंकि हम ऐसा कर अपने जैसे आम आदमी को तनाव में डालते हैं। इस मर्यादा पालन के लिये जनवादी लेखक को एक बार फिर साधुवाद।
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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